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________________ ३१८ कोई एक अस्ति अथवा नास्ति पद समस्त धर्मों को एक काल में कहने लगता है। मूलम्:-के पुनः कालादयः!। उच्यते-कालआत्मरूपमर्थः सम्बन्ध उपकारः गुणिदेशः संसर्गः शब्द इत्यष्टौ।। ____ अर्थः-जिज्ञासा-काल आदि कौन हैं ? उत्तर (१) काल (२) आत्मरूप (३) अर्थ (४) सम्बन्ध (५) उपकार (६) गुणि देश (७) संसर्ग (८) शब्द, ये आठ हैं । मूलम्-तत्रस्याज्जीवादिवस्त्वस्त्येवेत्यत्र यतकालमस्तित्वं ततकाला शेषानन्तधर्मा वस्तुन्येकनेति तेषां कालेनाभेदवृत्तिः। : अर्थः-(१) किसी अपेक्षा से जीव आदि वस्तु है ही .., यहाँ जिस काल में जीव आदिमें अस्तित्व है. उसी काल में उन वस्तुओं में शेष अनन्त धर्म भी हैं, यह काल से अभेदवृत्ति है। विवेचना:-अर्थ का धर्म के साथ भेद भी है और अभेद भी। घट मादि अर्थ जिस काल में हैं, उस काल में उनके सत्व आदि धर्म भी हैं। काल के साथ जिस प्रकार घट का सम्बन्ध है इस प्रकार घट के धर्मों का भी सम्बन्ध है। एक काल में सम्बन्ध होनेसे समस्त धर्म काल को अपेक्षा से अभिन्न हैं। इस रोतिसे विचार करने पर जिस काल में घट में
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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