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________________ ३७६ कुछ लोग कहते हैं, असत्त्व अभावरूप है और अभाव तुच्छरूप है । तुच्छ का स्वभाव शून्यता है । शून्य की कोई शक्ति नहीं होती, इसलिये उसमें सम्बन्ध करने की शक्ति भी नहीं होती। इस दशा में तुच्छ के साथ सम्बन्ध नहीं हो सकता, उनका कथन भी युक्त नहीं है। भिन्न भिन्न रूप से न होनेको असत्त्व कहते हैं और असत्त्व वस्तु का धर्म है इस. लिये एकान्तरूप से वह तुच्छरूप नहीं है। असत्त्व भी वस्तु है इसलिए उसके साथ सत् वस्तु का सम्बन्ध हो सकता है। अब जो लोग वस्तु के असतरूप होने पर आक्षेप करते हैंयदि पर द्रव्य आदि एक अर्थ में नहीं है तो असत्त्व के साथ अर्थ का सम्बन्ध हो सकता है पर जिनका असत्त्व है उन द्रव्य आदिके साथ तो सम्बन्ध नहीं हो सकता । घट का यदि पट के अभाव के साथ संबंध हो तो पट के साथ सम्बन्ध नहीं प्रतीत होता। वे भी युक्त नहीं कहते । पर द्रव्य आदिको अपेक्षा से जब घट का असत्त्व कहा जाता है तब पर द्रव्य आदिकी अपेक्षा आवश्यक होती है, इसलिये पर द्रव्य आदि भी सत् अर्थ के लिये उपयोगी हो जाते हैं। इस प्रकार की विवक्षा में पट आदि भी सत् घट का सम्बन्धी हो जाता है। षट की अपेक्षा से घट पटरूप से असत् कहा जाता है । इसके अतिरिक्त जब तक पर द्रव्य-क्षेत्रादि का ज्ञान न हो, तब तक स्व-द्रव्य क्षेत्र आदिका स्व-रूप में ज्ञान नहीं हो सकता । पर की अपेक्षा से स्व का व्यवहार होता है स्व के व्यवहार में कारण होनेसे पर द्रव्य आदि भी अर्थ के सम्बन्धी हैं। वस्तु केवल सत्रूप नहीं है, असत्रूप भी है। प्रत्येक वस्तु का स्वरूप नियत है । नियत स्वरूप का ज्ञान तब तक
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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