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वादी अथवा प्रतिवादी कोई एक जब हेतु को सिद्ध नहीं मानता, तब वह अन्यतरासिद्ध कहा जाता है। बौद्ध वृक्षों को अचेतन मानते हैं । वे कहते हैं, वृक्षों में ज्ञान नहीं है, इन्द्रिय नहीं है और मरण नहीं हैं अतः वृक्ष अचेतन हैं। यहां वादी बौद्ध है और प्रतिवादी जैन है। जैनों के अनुसार वृक्षों में चैतन्य है। वे वृक्षो में ज्ञान इन्द्रिय और मरण को स्वीकार करते हैं। प्रतिपक्षी जैन की अपेक्षा से बौद्ध का हेतु असिद्ध है, अतः अन्यतरासिद्ध है।
मूलम्:-नन्वन्यतरासिडी हेत्वाभास एव नास्ति, तथाहि-परेणासिड इत्युद्भावितं यदि वादी न तत्साधक प्रमाणमाचक्षीत, तदा प्रमाणाभावादुभयोरप्यसिडः । अथाचक्षीत तदा प्रमाणस्यापक्षपातित्वादुभयोरपि सिडः ।
अर्थः-शंका-अन्यतरासिद्ध हेत्वाभास ही नहीं है । प्रतिवादी जब यह हेतु असिद्ध है-इसप्रकार उद्भावन करता है तब यदि वादी हेतु के साधक प्रमाण को न कहे तो प्रमाण के अभाव से वह दोनों के लिये असिद्ध हो जायगा और यदि वादी प्रमाण को कहे तो प्रमाण के पक्षपात रहित होने से वह दोनों के लिये सिद्ध हो जायगा।
विवेचना:-अनुमान का प्रयोग करनेवाला वादी जब हेतु को कहता है और प्रतिवादी उस हेतु को असिद्ध कहना है तब यदि वादी हेतु के साधक प्रमाण को नहीं कहता तो