SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२० उमका कारण राग द्वेष आदिसे रहित ज्ञान है । युक्तियुक्त वचन प्रादिके द्वारा राग और द्वेष आदिसे रहित ज्ञान जब सिद्ध होता है तब वह ज्ञान सत्य को सिद्ध करता है। सत्य सिद्ध होकर असत्य का निषेध करता है। मुहूर्त के अनन्तर पुष्य नक्षत्र का उदय नहीं होगा। रोहिणी का उदय होने से । इस अनुमान में हेतु विरुद्ध पूर्वचरोपलब्धिरुप है। यहां पर पुष्य नक्षत्र का उदय निषेध्य है, उसके विरुद्ध मगशीर्ष नक्षत्र का उदय है। उसका पूर्वचर रोहिणी का उदय है। ___ मुहूर्त से पूर्वकाल में मृगशीर्ष का उदय नहीं हुआ। पूर्व फल्गुन्डी का उदय होने से । यह उदाहरण विरुद्धोत्तर. चरोपलब्धि का है। यहां मृगशीर्ष का उदय निषेध्य है.. उसके विरुद्ध मघा का उदय है, उसका उत्तरचर पूर्व फल्गुनी का उदय है। इस पुरुष को मिथ्या ज्ञान नहीं है, सम्यग्दर्शन होने से। यह उदाहरण विरुद्ध सहचरोपलब्धि का है। यहां मिथ्या. ज्ञान निषेध्य है--उसका विरोधी सम्यग् ज्ञान है । उसका सहचर सम्यग् दर्शन है। [प्रतिषेधरूप हेतु का निरूपण ] मूलम्:-प्रतिषेधरूपाऽपि हेतुर्दिविधः-विधि. साधकः प्रतिषेधसाधकश्चेति । अर्थः-प्रतिषेध रूप हेतु भी दो प्रकार का है (१) विधि साधक और (२) प्रतिषेध साधक । विवेचनाः -प्रतिषेधरूप हेतु का प्रथम भेद विधि साधक है। जिस प्रकार विधि स्वरूप हेतु का अविरुद्धोपलब्धि नामक
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy