SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 364
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१२ उदय नहीं होता। कृत्तिका के उदय की अपेक्षा से अन्य काल में ही शकट का उदय दिखाई देता है । पूर्व काल में जो भी वस्तु है वह उत्तरकाल में वर्तमान वस्तु का कारण हो तो पितामह आदि भी पुत्र के पिता हो जाने चाहिये। पूर्व काल में जिस प्रकार पिता है इस प्रकार पितामह आदि भी हैं । इस समानता के होने पर भी जिसके कारण पुत्र अपने स्वरूप को प्राप्त करता है वही पिता कहा जाता है। पितामह आदि पुत्र की उत्पत्ति में कारण नहीं हैं। अतः वे पिता नहीं है इसी रीति से कृत्तिका का उदय शकट के उदय का जो स्वरूप है उसमें हेतु नहीं है अतः वह शकट का कारण नहीं है इस रीति से पूर्वचर कारण से भिन्न है। इसी प्रकार उत्तरचर हेतु से भिन्न है जिस प्रकार पूर्व काल में वर्तमान समस्त अर्थ कार्य विशेष के कारण नहीं होते, इस प्रकार उत्तर काल में वर्तमान समस्त अर्थ कार्य नहीं होते । अन्तरिक्ष में नक्षत्र क्रम से पूर्वकाल और उत्तरकाल में प्रकट होते हैं । वे नक्षत्र परस्पर कारण अथवा कार्य नहीं हैं उनमें एक अन्य को प्रतीति का साधन है। व्याप्ति के कारण उनमें साध्य साधन भाव है । कार्य कारण भाव के बिना भी व्याप्ति होती है, अतः पूर्वचर हेतु कारण हेतु से भौर उत्तरचर हेतु कार्य हेतु से भिन्न है । मूलम्:-कश्चित्सहचरः, यथा मानुलिङगं. रूपवद्भवितुमर्हति रसवत्तान्यथानुपपत्तेरित्यत्र रसः रसो हि नियमेन रूपसहचरितः,तदभावे. ऽनुपपद्यमानस्तद्गमयति ।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy