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कोदयो हि भरण्युदयोत्तरचरस्तं गमयतीतिकालव्यवधानेनानयोः कार्यकारणाभ्यां भेदः । ___ अर्थः-कोई हेतु उत्तरचर होता है, जिस प्रकार-, अब कृत्तिका का उदय है इसलिये भरणी नक्षत्र का उदय हो चुका है । इस अनुमान में कृत्तिका का उदय उत्तरचर हेतु है। भरणी नक्षत्र के उदय हो चुकने पर कृत्तिका का उदय होता है इसलिये वह भरणी नक्षत्र के उदय को व्याप्त करता है । काल के व्यवधान के कारण पूर्वचर और उत्तरचर हेतुओं का कार्य और कारण से भेद है।
विवेचना:-कृत्तिका का उदय पूर्व काल में होता है और शकट का उदय उत्तरकाल में होता है, इसलिये शकट के उदय में कृत्तिका का उदय कारण है कारण होनेसे कृत्तिका के उदय के द्वारा शकट के भावी उदय का अनुमान कारण से कार्य का अनुमान है। अतः कारण से पूर्वचर का भेद नहीं है इस प्रकार की शंका उठती है ।
परन्तु इन दोनों में भेद है । जो वस्तु पूर्वकाल में होती है वह अवश्य उत्तरकाल में होनेवाली वस्तु का कारण नहीं होती। पूर्वकाल में वर्तमान जो अर्थ कार्य की उत्पत्ति में हेतु हैं, जिनके कारण कार्य अपने स्वरूप को प्राप्त करता है वे हो अर्थ कारण होते हैं । शकट के उदय का जो स्वरूप है वह कृत्तिका के उदय से नहीं उत्पन्न होता। जब कृत्तिका का उदय होता है तब अव्यवहित उत्तर काल में ही शकट का: