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शद्धि आदि का प्रयोग भी होना चाहिये । इस रीति से दश अवयवों वाला हेतु हो जाता है।
विवेचना:-साध्य अर्थ का सन्देह और भ्रम से रहित ज्ञान जिम रीति से प्रतिपाद्य को हो उस रीति से प्रतिपादन होना चाहिये । समस्त लोग विचार को समान शक्ति बाले नहीं होते । अपने बुद्धिबल से जो पक्षका निर्णय कर सकता है और व्याप्ति के ग्राहक तर्क का स्मरण कर सकता है और उपनय आदि को जान सकता है उसके लिये यदि केवल हेतु का प्रयोग हो-तो भी हानि नहीं है । 'यहां धूम है' इतना वचन सुनकर वह पक्ष और साध्य आदि को जान सकता है। परन्तु जो पक्ष का निश्चय स्वयं नहीं कर सकता उसके लिये केवल हेतु का प्रयोग साध्य की सिद्धि में सर्वथा असमर्थ है, अतः पक्ष का भी प्रयोग करना चाहिये । जैसे यह देश अग्निमान है, कारण यहां धूम है।
जिसको व्याप्ति के प्रकाशक तर्क प्रमाण का स्मरण महीं उसके लिये दृष्टांत का प्रयोग करना चाहिये। वह इस प्रकार अग्नि है. धूम होने से, जहां धूम है वहां अग्नि है, जिस तरह महानस में।
व्याप्ति के साधक तर्क प्रमाण को स्मरण करके भी नो पक्ष में हेतु को नहीं जोड सकता उसके लिये उपनय भो मावश्यक है। जिस प्रकार इस देश में धूम भी है।
उपनय तक प्रयोग होने पर भी जो साध्य की सिद्धि में असमर्थ है उसके लिये निगमन भी आवश्यक है जिस प्रकार यहां अग्नि है।