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________________ ३०० हेतु योजगितुन जानोते, तं प्रत्युपनयोऽपि । एवमपि साकाक्षं प्रति च निगमनम् । पक्षा. दिस्वरूपविप्रतिपत्तिमन्तं प्रति च पक्षशद्धयादि. कमपति सोऽयं दशावयवो हेतुः पर्यवस्यति । ___ अर्थः-मन्दबुद्धि जिज्ञासुजनों को समझाने के लिये दृष्टान्त आदि का प्रयोग भी उपयोगी होता है। वह इस गति से-जिसने क्षयोपशम के विशेष से पक्ष का निर्णय किया है और दृष्टान्त के द्वारा जिसका स्मरण होता है इस प्रकार की व्याप्ति के ग्राहक तर्क प्रमाण की स्मति में जो निपुण है और अन्य अवयवों की रचना में समर्थ होता है, उसके लिये केवल हेतु का प्रयोग करना चाहिये । परन्तु जिसको अब भी पक्ष का निर्णय नहीं हुआ-उसके लिये पक्ष का प्रयोग भी करना चाहिये और जो व्याप्ति के ग्राहक प्रमाण का स्मरण नहीं करता-उसके लिये दृष्टान्त का प्रयोग भी करना चाहिये । जो दार्शन्तिक अर्थात् पक्ष में हेतु के जोडने को नहीं जानता-उसके लिये उपनय का भी प्रयोग उचित है । इतना हो जाने पर भी जिसकी इच्छा विशेषरूप से जानने की होती है, उसके लिये निगमन का भी प्रयोग करना चाहिये । पक्ष आदि के स्वरूप में जिसको विप्रतिपत्ति हो उसके लिये पक्ष
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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