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स्थापना करता है । यहां पर जो बाक्य वादी को नियत करता है उसके द्वारा विप्रतिपत्तिरूप विवाद में व्यवधान हो जाना है । व्यवधान होने पर भी व्युत्पन्न बुद्धिवाला प्रतिवादी वादी का यह पक्ष है इस प्रकार जान सकता है। परन्तु जिन की बुद्धि अतिकुशल नहीं है वे विवाद से पक्ष को नहीं जान सकते । इस प्रकार के प्रतिवादियों के लिये पक्ष का प्रयोग अवश्य करना चाहिये।
मूलम-प्रकृतानुमानवाक्यावयवान्तरैकवाक्यतापन्नात्ततोऽवगम्यमानस्य पक्षस्याप्रयोगस्य चेष्टावात् ।
अर्थः-प्रकृत अनुमान वाक्य के अन्य अवयवों के साथ जो एक वाक्यता को प्राप्त हो गया है इस प्रकार के विवाद से यदि पक्ष की प्रतीति हो तो पक्ष के प्रयोग का न करना इष्ट है।
विवेचना:-जब विप्रतिपत्ति के अनन्तर काल में ही बादी अपने पक्ष की सिद्धि के लिये परार्थानुमान का प्रयोग करता है तब वादी उदाहरण भाविक जिन प्रयोगों को करता है उन प्रयोगों के वाक्यों के साथ विप्रतिपतिरूप वाक्य मिलकर एक वाक्य बन जाता है। इस दशा में कुशल प्रतिवादी विप्रतिपत्ति के बोधक वाक्यरूप विवाद के द्वारा पक्ष को जान सकता है। इस प्रकार के प्रतिवादी के लिये पक्ष के अप्रयोग कोचन भी स्वीकार करता है । किसी काल में पक्ष का प्रयोग और किसी काल में पक्ष का अप्रयोग उचित है । इस विषय में भी अनेकान्त युक्त है।