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________________ का वादी शशशग आदि असत् पदार्थों के प्रमता को सिद्ध करने के लिये जिस अनुमान का प्रयोग करता है वह अनु. मान भी अयुक्त हो जायगा । प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से श.शग आदिको प्रतीति नहीं होती । इसलिये शशशंग आदि असत् है अर्थात् “शशश गाविः असत् भप्रतीतस्मात्' इस प्रयोग में अप्रतीतत्व हेतु नहीं हो सकेगा। यहां भी अप्रतीतत्व हेतु अभाव का धर्म है अथवा अभाव मौर भाव का धर्म है अथवा भाव का धर्म है ? ये तीन विकल्प हो सकते हैं । जब तक शशशग आदिका अभाव नहीं सिद्ध हुआ तब तक अप्रतोतस्वरूप हेतु अभाव के धर्म के रूप में सिद्ध नहीं हो सकता। यदि मभाव के धर्म रूप में सिद्ध हो तो शशशंग आदिका असत्त्वरूप साध्य सिद्ध है मतः अनुमान व्यर्थ हो जायगा। अभाव का धर्म यदि शश. शंग आदिमें रहे तो शशश ग आदि अभावरूप ही होना चाहिये। नो मभाव नहीं है, उसमें अभाव का धर्म नहीं रह सकता। यदि आप अप्रतीतस्वरूप हेतु को प्रभाव और भाव दोनों का धर्म कहते हैं, तो अनेकान्तिक होनेके कारण यह हेतु शशशग आदिक असत्त्व के समान सत्त्व को प्रतीति को भी उत्पन्न करेगा । इसलिये असत्त्व की सिद्धि नहीं होगी। यदि आप अप्रतीतत्वरूप हेतु को भाव का धम कहते हैं तो विरूद्ध हो जायगा। वह किसो अभाव में नहीं परन्तु भाव में ही है-अतः उसके द्वारा शशशग भादिका असत्त्व नहीं सिद्ध हो सकेगा। इन समस्त आक्षेपों के परिहार के लिये कहा जा सकता है-“सामान्य रूप से अप्रतीतत्वरूप हेतु को व्याप्ति
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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