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है अथवा वह्निमान और अवह्निमान दोनों का धर्म है अथवा अवह्निमान का धर्म है ?
प्रथम पक्ष नहीं हो सकता । अनुमान से पहले पर्वत वह्निमान है इस प्रकार निश्चय नहीं है । अतः धूम वह्निमान का धम है, यह निश्चय नहीं हो सकता। महानस का धूम वह्निमान का धर्म है यह निश्चय है परन्तु महानस का धूम पर्वत में असिद्ध है, अतः वह पर्वत में लि. को सिद्ध करने के लिये असमर्थ है।
यदि धूम हेतु वह्निमान और अवह्निमान दोनों का धर्म हो तो व्यभिचारी हो जायगा, कारण, जहाँ वह्नि नहीं है वहाँ भी धूम रहता है । इस प्रकार का धूम पर्वत में वह्नि
और वहिन के अभाव के संदेह को उत्पन्न करेगा यदि घूम हेतु वह्नि रहित का धर्म है तो विरद्ध हो जायगा । नहां वह्नि का अभाव है वहाँ ही धूम रहता है इस दशा में पति सहित किसी धर्मों में धूम नहीं रह सरुता ।
इन विकल्पों के द्वारा प्रसिद्ध धूम हेत से वह्नि का भनुमान अयुक्त हो जायगा । इन भाक्षेपों के परिहार के लिये यह कहा जाय-"सामान्य रूप से धूम हेतु वहिनमान का धर्म सिद्ध है, इसलिये प्रकृतधर्मों पर्वत में जब दिखाई देता है तब वहां वह्नि को सिद्ध कर सकता है- तो इम प्रकार का उत्तर सर्वज्ञ की सत्ता के साधक हेतु में भी हो सकता है। सामान्य रुप से बाधक प्रमाणों का अभावरूप हेतु भाव धर्मरूप में सिद्ध है ।बह जब प्रकृत धर्मों में दिखाई देता है तब सत्त्व को सिद्ध करता है।
विकल्पसिद्ध धर्मी की सत्ता के साध्यरूप को नो इषित करता है उसके पक्ष में अन्य दोष भी हैं. इस प्रकार