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________________ हेतु में पक्षधर्मता है। जिस स्थूल काल में कृत्तिका का उदय है उसमें रोहिणी नक्षत्र का भावी उदय सिद्ध होगा। इसी रीतिसे जल चन्द्र और आकाश चन्द्र का मध्यवर्ती जितना देश है उतमे को पक्ष रूपमें करने पर जल चद्र रूप हेतु भी पक्ष में विद्यमान हो जाता है। जिस विशाल देश में जल चन्द्र है उसी में प्राकाश चन्द्र रूप साध्य है। इस रीति से हेतु में पक्षधर्मता का उपपादन युक्त नहीं इस रीति से यदि पक्षधर्मना हो तो कोई भी हेतु पक्ष धर्मता से रहित नहीं होगा । जगत को पक्ष बनाकर प्रासाद का श्वेत वर्ण काक के कृष्ण वर्ण से सिद्ध होगा। काक का कृष्ण वर्ण हेतु है वह जगत रूप पक्ष में है । इसलिये जगत में प्रासाद का श्वेत वणे सिद्ध होना चाहिये । इस रीति से पक्ष में रहने वाला हेतु साध्य को नहीं सिद्ध कर सकता। वस्तुतः व्याप्ति के कारण हेतु साध्य को सिद्ध करता है। इसके लिये पक्षधर्मता आवश्यक नहीं है। कृत्तिका के उदय और रोहिणी के उदय की परस्पर व्याप्ति है। इसलिये कृत्तिका का उदय पक्ष में अविद्यमान होने पर भी रोहिणी के भावी उदय को सिद्ध करता है। इसी रीति से जल चन्द्र आकाश में चन्द्र के बिना नहीं हो सकता । इसलिये जलचन्द्र की आकाश चन्द्र के साथ अन्यथा अनुपपत्ति है । इसलिये जल चन्द्र रूप हेतु आकाश चन्द्र रूप साध्य को सिद्ध करता है। इस विषय में पक्ष धर्मता का उपयोग नहीं है। धूम अति दूरवर्ती वहिन से उत्पन्न नहीं हो सकता। अत: रसोई के घर से पर्वत में अग्नि की सिद्धि नहीं होती। जलचन्द्र भिन्न देश में रहने वाले अकाश चन्द्र के बिना नहीं हो मकता, इसलिये वह दूर देश में भी आकाश चन्द्र को सिद्ध
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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