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________________ १८१ देता है तब "यह वही घडा है" यह ज्ञान जिस प्रकार प्रत्यभिज्ञान' है इस प्रकार 'जो गाय के समान है वह गवय है। इस संकेत के काल में गवयपद और गवय के वाच्यवाचक संबध को जानकर और पीछे गवय को देखकर उसी संबंध की प्रतीति प्रत्यभिज्ञान है । संकलन प्रत्यभिज्ञान का स्वरूप है। यहां पर समान अर्थ का दर्शन और गबय पदके द्वारा वाच्यता इन दोनों का संकलन है। मलम्-अत एव पयोम्बुभेदी हंसः स्यात" इत्यादिवाक्याथज्ञानवतां पयोम्बुभेदित्वादिषि. शिष्टयक्तिदर्शने सति 'अय हंसपदवाच्यः' इत्यादिप्रतीनिर्जायमानोपपद्यते। ____अर्थ-इसी कारण दूध और पानी का भेद करने वाला हंस होता है-इत्यादि वाक्यों के अर्थ को जाननेवाले लोग जब दूध और पानी के भेदकत्व आदि धर्मों से विशिष्ट व्यक्ति को देखते हैं तब उनको यह "हंस" पद से वाच्य है इत्यादि प्रतीति होती है। विवेचना:-दो ज्ञानों का संकलन प्रत्यभिज्ञान के स्वरूप के लिये आवश्यक है। परन्तु सदा दो ज्ञानों का स्वरूप एक ही प्रकार का नहीं होता । सादृश्य के द्वारा जब वाच्यवाचक भाव का प्रतिपादन होता है तब गवय का द्रष्टा जब गवय को देखता है तभी गवय में गाय के साथ सादृश्य का दर्शन कर लेता है पूर्वकाल में उसको साइश्व का ज्ञान नहीं हआ था । बस्तु के रूप आदि का पूर्वकाल में प्रत्यक्ष अनुभव
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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