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आप इस गति से कहो तो वह युक्त नहीं । स्मृति भी अपनी उत्पत्ति में ही अनुभव की अपेक्षा करती है, अपने विषय के ज्ञान में वह भी स्वतन्त्र है ।
विवेचना:- साध्य के साथ नियत संबंध के कारण हेतु अनुमिति को उत्पन्न करता है । उत्पन्न होनेके अनन्तर अनुमिति स्वतन्त्र रूप से साध्य को प्रकाशित करती है, इस कारण यदि आप अनुमिति को प्रमाण कहो तो; आपका आक्षेप स्मृति के विषय में युक्त नहीं रहता । स्मृति भी उत्पत्ति में ही अनुभव की अपेक्षा करती है. परंतु अपने विषय के प्रकाशन में स्वतंत्र है। धूम का अग्नि के साथ नियत संबंध निश्चित है. इसलिए स्थान विशेष में धूम को देखकर अग्निरूप साध्य की अनुमिति होती है उत्पन्न होनेके अनन्तर साध्यरूप अग्नि के प्रकाश में अनुमिति घूम के साथ अपने संबंध को अपेक्षा नहीं करती । अन्य दीपक अपनी उत्पत्ति में जलते दीपक की अपेक्षा करता है । परंतु प्रज्वलित हो चुकने पर अर्थ के प्रकाशित करने में अपने उत्पादक दीपक की अपेक्षा नहीं करता । अर्थों के प्रकाशन में उत्पादक के समान उत्पन्न दीपक भी स्वतन्त्र है । उत्पादक दीपक यदि नष्ट हो जाय तो भी उत्पन्न दीपक अर्थ को प्रकाशित करता ही है। स्मरण अनुभव से उत्पन्न होता है। इस विषय में विवाद नहीं । परंतु जब स्मरण उत्पन्न होता है तब उससे बहुत पहले अनुभव का नाश हो चुका था। अब स्मरण अपने विषय के प्रकाशन में सर्वथा स्वतन्त्र है ।
मूलम्:- अनुभवविषयीकृतभावावभासि स्मृतेर्विषयपरिच्छेदेऽपि न स्वातन्त्र्य
न्याः