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मूलम् --उत्पत्त्यनन्तरं निर्मूलनश्वरं प्रति. पाति, जलतरङ्गवत्, यथा जलतरङ्ग उत्पन्नमात्र एव निर्मूलं विलीयते तथा इदमपि ।
अर्थ---(५) जो अवधिज्ञान उत्पत्ति के अनन्तर मूल के साथ नष्ट हो जाता है वह प्रतिपाति कहा जाता है । यह ज्ञान जल की तरङ्ग के समान है। जिस प्रकार पानी में उत्पन्न तरङ्ग उत्पत्ति के अनन्तर क्षण में ही नष्ट हो जाती है इस प्रकार यह ज्ञान भी उत्पत्ति के अनन्तर ही समूल नष्ट हो जाता है।
मलम् आकेवलप्राप्तेः आमरणाबा भवतिष्ठमानम् अप्रतिपाति, वेदवत्, यथा पुरुष. वेदादिरापुरुषादिपर्यायं तिष्ठति तथा इदम. पीति।
___ अर्थ---(६) जो अवधिज्ञान केवलज्ञान की प्राप्ति तक अथवा मृत्यु की प्राप्ति तक स्थिर रहता है वह अप्रतिपाति कहा जाता है, जिस प्रकार वेद । पुरुषवेद आदि वेद जिस प्रकार पुरुष आदि पर्याय जब तक रहते हैं तब तक स्थिर रहता है इस प्रकार यह अवधि ज्ञान भी स्थिर रहता है।