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के समूह को प्राप्त करके बढ़ने लगती है इसी प्रकार अत्यंत शुभ अभ्यासाय को पाकर यह अवधिज्ञान बढता है।
विवेचना- अगुल के असंख्येय भाग के तुल्य क्षेत्र में उत्पन्न होकर यह ज्ञान इतना बढता है जितने से सर्व लोक में व्याप्त हो जाता है। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय जहाँ तक व्याप्त है वहाँ तक यह ज्ञान बढ़ सकता है।
मलम---उत्पत्तिक्षेत्रापेक्षया क्रमेणाल्पो . भवावषयं हीयमानम् , परिच्छिन्नेन्धनोपादानसन्तत्यग्निशिखावत, यथा अपनीतेन्धनाग्निज्वाला परिहीयते तथा इदमपोति ।
अर्थ---(४) उत्पत्ति के क्षेत्र की अपेक्षा से जिम का विषय क्रम से न्यून होता जाता है वह हीयमान अवधिज्ञान है, जिस अग्नि की ज्वाला में वाष्ठ परिमित रु.प में डाले जाते हैं उस अग्नि की ज्वाला के समान । एक बार परिमित प्रमाण में काष्ठ डालने के पीछे अधिक काष्ठ न डाला जाय तो अग्नि क्रम से न्यून होती जाती है। इसी रीति का यह अवधिज्ञान है ।
विवेचना-असंख्येय द्वीप समुद्र, पृथ्वी और विमानों तक उत्पन्न होकर क्षीण होते होते जो ज्ञान सर्वथा नाश पाता है वह हीयमान है । अन्त में यह ज्ञान अंगुल के असंख्येय माग को भी नहीं देख सकता।