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अर्थ--(११) जिसमें समान पाठ होता है वह गमिकश्रत कहा जाता है।
(१२) जिसमें प्रायः समान पाठ नहीं होता वह अगमिक श्रुत है । कालिक श्रुत में समान पाठ नहीं है।
मूलम्--अङ्गप्रविष्टं गणधरकृतम् । अनङ्गप्रविष्टं तु स्थविरकृतमिति । ___ अर्थ–१३) जिस श्रुत की गणधर भगवानों ने रचना की है वह श्रुत अङ्गप्रविष्ट कहा जाता है ।
(१४) स्थविर जिसकी रचना करते हैं वह अनंगप्रविष्टश्रुत कहा जाता है।
विवेचना-श्री गणधर के प्रश्नों के उत्तर में भगवान श्री तीर्थकर उत्पाद व्यय और ध्रौव्य के प्रतिपादक तीन पदों का उपदेश करते हैं । इनसे जिनकी उत्पत्ति है वे आचाराङ्ग आदि बारह अङ्ग हैं। जिनमें प्रश्न बिना अर्थ का प्रतिपादन है वे आवश्यक आदि अङ्ग बाह्य श्रुत हैं । द्वादशांगी अर्थात बारह अङ्ग प्रत्येक तीर्थकर के तीर्थ में नियत हैं परन्तु तंदुल बैंकालिक आदि श्रुन अनियत है। इस रोतिसे अङ्गप्रविष्ट और अनंग प्रविष्ट में भेद है।
मलम् --तदेवं सप्रभेदं सांव्यवहारिकं मति· श्रुतलक्षणं प्रत्यक्ष निरूपितम् ।
अर्थ--इस रीति से मतिज्ञान और श्रुतज्ञान