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है परन्तु क्रम का ज्ञान नहीं होता । इस प्रकार अवग्रह आदि क्रम से होते हैं पर शीघ्र होने से क्रम प्रतीत नहीं होता ।
विवेचना-पीछे की आनुपूर्वी से उत्पत्ति 'उत्क्रम' है. जिस प्रकार प्रथम धारणा पीछे अपाय उसके पोछे ईहा और उसके पीछे अवग्रह। आनुपूर्वी के बिना उत्पत्ति 'व्यतिक्रम' है। जिस प्रकार किसी काल में अवग्रह के बिना ईहा, अथवा अवग्रह और ईहा के बिना अपाय और अपाय के बिना धारणा । इनमें से किसी एक को उत्पत्ति और अन्यों को अनुत्पत्ति 'न्यूनता' है। किसी काल में अवग्रह ही हो और इहा आदि न हो अथवा किसी काल में अवग्रह और ईहा ही हों, अन्य किसी काल में अवग्रह. ईहा और अपाय ही हों, तो न्यूनता है। इन तीन प्रकारों से क्रम का विरोध नहीं होता। ये चारों जब क्रम से होते हैं तब वस्तु केस्वभाव का ज्ञान होता है। अवग्रह के द्वारा जिस वस्तु का ज्ञान नहीं हुआ उसमें ईहा नहीं हो सकती । ईहा विचार रूप है इसलिए अज्ञात और विचार के योग्य वस्तु में नहीं हो सकतो। इसकारण प्रथम अवग्रह और अनंतर ईहा होती है। धारणा में वस्तु का स्वरूप निश्चित रहता है इस लिए वह निश्चयात्मक अपाय के बिना नहीं हो सकती . इस क्रम से हो वस्तु की प्रतोति होती है अतः अवग्रह आदि का क्रम युक्त है।
__ जिस अर्थ का ज्ञान अनेक बार हो चुका है वह जब किसी काल में झटपट प्रतीत होता है. तब प्रथम समय में अपाय हुआ है इस प्रकार प्रतीत होता है। पर इस प्रकार होता नहीं। जब वस्तुओं की उत्पत्ति अत्यंत सूक्ष्म काल में होती