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________________ विवेचना-अर्थावग्रह के काल में शब्द का भान नहीं होता। जो अवग्रह का निरूपण करता है वह 'शब्द शब्द' इम प्रकार बोलता है। श्रोता को शब्द का भान अव्यक्त रूप में होता है। अव्यक्त रूप में जो भान है वही अर्थावग्रह है । जिसमें वाच्य वाचक भाव का भान होता है वह अर्थावग्रह नहीं है। यह शब्द है अथवा यह रूप आदि है इस रीति से जिसकी प्रतीति नहीं होती वह अव्यक्त कहा जाता है। "यह शब्द है" इस रीति से यदि प्रतीति हो तो वह अव्यक्त नहीं है। आकार रहित उपयोग के रूप में अर्थावग्रह है। उसका विषय, शब्द के उल्लेख से रहित होने पर ही अव्यक्त हो सकता है शङ्ख और धनुष आदि के शब्दों की अपेक्षा से यदि शब्द के ज्ञान को अव्यक्त कहा जाय तो वह युक्त नहीं। आगम आकार रहित उपयोग को अर्थावग्रह के रूप में कहता है यदि सामान्य से अतिरिक्त शब्द का भान हो तो वह आकार से रहित नहीं है । मूलम्-यदि च व्यञ्जनावग्रह एवाव्यक्त शब्दग्रहणमिष्येत तदा सोऽप्यर्थावग्रहः स्यात, अर्थ. स्य ग्रहणात् । ___ अर्थ-यदि व्यंजनावग्रह में ही अव्यक्त शब्द का भान माना जाय तो अर्थ का ज्ञान होने से वह भी अर्थावग्रह हो जायगा। विवेचना-यदि आप कहते हैं, केवल सामान्य की प्रतीति व्यंजनावग्रह में होती है और अर्थावग्रह में 'यह शब्द है। इस प्रकार की प्रतीति होती है तो व्यंजनावग्रह का स्वरूप
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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