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________________ 99. ईहा का निर्देश है, इसलिये "यह शब्द है" इस आकार में ही अवग्रह को मानना चाहिये | विवेचना - शंका करते हैं नन्दी सूत्र में शब्द का ज्ञान अवग्रह रूप में कहा गया है । इस अवग्रह के स्वरूप का प्रतिपादन करता हुआ सूत्र कहता है यह कौनसा शब्द है । यह शंख का शब्द है अथवा धनुष का शब्द है इस रूप से वह नहीं जानता । इस प्रकार के शब्द भेद का अज्ञान अर्थावग्रह में कहा गया है, इससे प्रतीत होता है - सामान्यरूप में शब्द ज्ञान की वह अवग्रह रूप में स्वीकार करता है । सामान्य रूप से यदि शब्द का ज्ञान न हो तो शब्द के अवान्तर भेदों की जिज्ञासा नहीं होती । अवान्तर भेद को जिज्ञासा ईहा रूप है इसलिये उससे पूर्व में " शब्द है" इस आकार का अर्थावग्रह आवश्यक है । मूलम् - न; 'शब्दः शब्द:' इति भाषकेणैव भणनात्, अर्थावग्रहेऽव्यक्तशब्दश्रवणस्यैव सूत्रे निर्देशात्, अव्यक्तस्य च सामान्यरूपत्वादनाकारोपयोगरूपस्य चास्य तन्मात्र विषयत्वात् । अर्थ - ' शब्द शब्द ' इस रीति से तो वक्ता कहता है । अर्थावग्रह में अव्यक्त शब्द का श्रवण होता है केवल इतना निर्देश सूत्र में है और अव्यक्त सामान्यरूप है और सामान्य, आकार रहित उपयोग का विषय होता है ।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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