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________________ Ixv 137 'नाना पुटम् पङ्किः अशुद्धम् । शुद्धम् 1232 नंत नन्त 1282 अवति अवीत , 4 रदृष्ठ रदृष्ट , 10 सध्यते साध्यते 14 ननु (प्रत्य ननु सुख्यामीति (प्रत्य 1306 तथेति तथातथेति 132 24 वशी वंशी 2 व्यक्तावास्था व्यक्तावस्था 148. 6 . मानीनरासः . माननिरासः 179 प्रकृति विकृतीनामीश्वराधिष्ठा- पञ्चीकरणस्थापनम् नेन कार्यकरत्वम् ,, 6 ऐकैकं एकैकं 180 15 नाना 19-20 . . . . . . ते। . . . . . . ते तत होत ततः' इति 184 19 धाविभगिः धा विभागः 187 9 सबन्धे संबन्धे 1882 तोऽप्यं तोऽप्यंशभेदः। 199 वरम् । 205 वयवस्यै वयवकस्यै जत्वा जकत्वा वस्यै वकस्यै 2149 सज सञ्ज 2257 मिथ मिथः 226 19 वल्लयादौ वल्यादौ 227 4 (त्व) (नत्व) 232 10 द्वित्वदि द्वित्वादि 237 21 संयोगादः संयोगादेः 239 20 अक : आको SARVARTHA. परम् ।
SR No.022392
Book TitleTattva Muktakalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorD Srinivasachar, S Narasimhachar
PublisherMysore Government Branch
Publication Year1933
Total Pages746
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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