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________________ . . . " Xiv... - 3 वने पुटम् पतिः अशुद्धम् - ___93 15 लिबन्धी 96 10 मित्यत्रा 101 ___4 दृष्टाध्य 10 नित्या105 15 योरः 106 सत्वात् , 16 सारे 107 त्वया. पटत्वस्य 15 सिद्धयेत् 108 109 15 ध्या 16 स्त्व 111 16 113 चिद्वार 114 यत्प्रवणयो , 18 धेय यन्नैवं य 116 10 (ज्ञातृत्वादिः) 11 प्रसिद्धौ त्पन्नेरिति सिद्धयार्थ? कादा 1208 वदति साधिका 121 10 न्तिनो? स विति 14 नोपा पक्षत्वा तेन्मह 1228 मृत्यं शुद्धम् तिबन्दी मित्यत्रा दृष्टादनुमानादध्य नित्यानुयोरसत्त्वात् सरे त्वयाऽपटस्य सिध्येत् " द्धया त्स्व वेन चिद्दार यत्प्रवणतायो धेय यन्नैवं तन्नैवं य (ज्ञातृत्वादि) प्रसिद्ध त्पन्नैरिति सिद्धार्थकादा वदिति सात्विका तिनोऽस वितिनोप पक्षत्व तेर्मह मृत्यु 93 117 12 18
SR No.022392
Book TitleTattva Muktakalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorD Srinivasachar, S Narasimhachar
PublisherMysore Government Branch
Publication Year1933
Total Pages746
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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