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156 . 'द्रव्य-गु-पयायनो रास' तथा 'द्रव्यानुयो।५२मश' व्यायाम विदा पर्थोनी याही . सत्त्वगुण देखिए गुण (त्रिविध) | (११) वसति सप्तभंगी
४९५ सत्त्वगुणवृद्धि
२५१५/ (१२) व्यञ्जनपर्याय सप्तभंगी ५०५-५२२ सत्त्वशुद्धि देखिए शुद्धि
(१३) सत्त्व-असत्त्व सप्तभंगी सत्प्रतिपक्ष देखिए दोष (दूषण)
(अस्ति-नास्ति सप्तभंगी) ४६१-४६७, सत्प्रवृत्तिपद देखिए पद
५५६-५५७ सदनुष्ठान
२४३२ (१४) सुनय-दुर्नय सप्तभंगी ५४६-५४७ सदनुष्ठानलक्षण २४११-१२ सप्तभङ्गीलक्षण
५३०-५३१ सदसत्कार्यवाद देखिए वाद
। (१) नय सप्तभंगीलक्षण ५३१-५३२ सदसद्रूप अनेकान्त देखिए भजना (+अनेकान्त)। (२) प्रमाण सप्तभङ्गीलक्षण ५३१-५३२ सदाचार देखिए पूर्वसेवा | सफलारंभिता
२३०५ सदानंदमत समीक्षा देखिए समीक्षा |सबीज समाधि देखिए समाधि (पातंजल) सद्गुरु २४०० | समकालीनत्व
११४४-११४६ सद् द्रव्यार्थिकनय देखिए नय (देवचंद्रजी- समतापत्ति
२३७९ सम्मत) (१) द्रव्यार्थिकनय | समतायोग देखिए योग (योगबिन्दु) सद्भूत अशुद्ध व्यवहारनय देखिए नय (नवविध) | समनन्तर प्रत्यय देखिए प्रत्यय
व्यवहारनय (देवचन्द्रजी) (२) अशुद्ध व्यवहारनय | समभाव देखिए भाव सद्भूत व्यवहार देखिए उपनय
समभावापत्ति
२३७९ सद्भूत व्यवहारनय देखिए नय (आध्यात्मिक) | समभिरूढ नय देखिए नय (आपादन प्रकार)
(२) व्यवहारनय | समभिरूढ नय (द्विविध) देखिए नय (नवविध) सप्ततत्त्व प्रज्ञापना देखिए प्रज्ञापना समयक्षेत्र (मनुष्यक्षेत्र-नृलोक) १५०२-१५०३, सप्तभंगी ४५९-५५७,६४७,१२१०
१५२९, १६००-१६०६ (१) अर्थपर्याय सप्तभंगी ५०९-५१० | समयस्वरूप
१५५४-१५५५ (२) उत्तरनय सप्तभंगी ५५३-५५४ समरसभाव
२३७९ (३) कषाय सप्तभंगी ५५० | समरसापत्ति
२३७९ (४) नय सप्तभंगी ५३२,५४२-५४६,५५३ समरसीभाव
२३७९ (५) नयगोचर सप्तभंगी
५४५ | समवच्छिन्नक्रिया अप्रतिपाती शुक्लध्यान देखिए (६) नयप्रयुक्त सप्तभंगी
५४४|
ध्यान (चतुर्विध) (४) शुक्ल ध्यान (७) प्रमाण सप्तभंगी ५४८-५५०,५५३-५५४ | समवायनिरास २५०-२५४,२८७,१११९, (८) प्रस्थक सप्तभंगी ४९०-५०४,५२२
१३२३,१७७५-१७८०,१८१५,१८८६ (९) भेदाभेद सप्तभंगी ४७५-४८९ | समवाय संबंध देखिए संबंध (१०) मूलनय सप्तभंगी ५०२- | समाधि (पातंजल)
२२५८ ५०४,५५१,५५४-५५६ (१) निर्बीज समाधि
२५७९
४७०