SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 140 • 'द्रव्य-शु-पर्यायनी ।स' तथा 'द्रव्यानुयोग५२।मश' व्यायाम विला पहार्थोनी याही . मद-मदनादि देखिए दोष (रत्नत्रयसंबंधी) | मार्गणास्थान ६३१ मध्यम गीतार्थ देखिए गीतार्थ | मार्गपतित (मार्गप्रविष्ट) २४१४,२४१८,२४८९ मध्यम परोपकार देखिए परोपकार मार्गानुसारी जीव २४०८,२४१३,२४८९ मध्यम श्रोता देखिए श्रोता | मार्गानुसारी बुद्धि देखिए ज्ञान (+उपयोग + बोध) मध्यस्थता देखिए माध्यस्थ्य मार्गाभिमुख २४०३-०८,२४८९ मनःपर्यवज्ञान देखिए ज्ञान मित्रादिदृष्टिप्रकर्ष २५३० (+उपयोग + बोध) | मित्रादृष्टि देखिए योगदृष्टि मन संलीनता देखिए संलीनता | मिथ्यात्व ६२६ मनस्कार ८७३, ११७१-११७४, १७५१-५२ (१) अक्रिया मिथ्यात्व २३६६ मनुष्यक्षेत्र देखिए सपना (२) अज्ञान मिथ्यात्व २३६६ मनोगुप्ति (विविध) देखिए गुप्ति (३) अविनय मिथ्यात्व २३६६ मनो विजय देखिए विजय (४) गाढ मिथ्यात्व २२८९ मलौषधि लब्धि देखिए लब्धि (योगफल)| (५) व्यक्त मिथ्यात्व २२८८ महापथप्रयाण २३७९ (६) सांशयिकादि (पंचविध) मिथ्यात्व २२८४ महामोह २५७०,२५७२ मिथ्यात्व देखिए दोष (रत्नत्रयसंबंधी) महायोगी देखिए योगी | मिथ्यात्वत्याग २५१४ महासमाधिबीज | मिथ्यात्वत्याग उपाय २५१४ महा सामान्य देखिए सामान्य | मिथ्यात्वभेद देखिए भेद (प्रकार) महासामान्यग्राहक नैगम देखिए नय (नवविध) | मिथ्यादर्शन ४७० नैगम (शीलाङ्काचार्यसम्मत) मिथ्यादृष्टि देखिए दृष्टि महासामायिक देखिए मति माइल्लधवलमत समीक्षा देखिए समीक्षा | मिश्र उत्पत्ति देखिए उत्पत्ति (आगमिक मत) मागधी भाषा देखिए भाषा | मिश्र भाषा - देखिए भाषा मातृकानुयोग देखिए अनुयोग देखिए पूर्वसेवा माध्यमिक मत देखिए बौद्धमत १२४-१२६ माध्यमिकबौद्धमत समीक्षा देखिए समीक्षा | मुक्तिद्वेष देखिए दोष (रत्नत्रयसंबंधी) माध्यस्थ्य (मध्यस्थता) ११३२-११३७,११४२, मुक्तिराग २४२० २३८५,२४०९,२४२५ | मुख्यत्व (अर्थगत) ५७१ मान देखिए उपचारनिमित्त (लक्षणानिमित्त + | मुख्य वृत्ति देखिए वृत्ति (नैयायिकसम्मत) आरोपनिमित्त) | मुख्य संकेत देखिए संकेत मानसिक मौन देखिए मौन | मूढ चित्त देखिए चित्त माया (कपट) देखिए दोष (रत्नत्रयसंबंधी) | मूढता २५७३ २४६१ २४७२ मिथ्यामति | मुक्त्य द्वेष | मुक्तावली
SR No.022378
Book TitleDravya Gun Paryayno Ras Dravyanuyog Paramarsh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherShreyaskar Andheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year2013
Total Pages432
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy