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________________ सागारधर्मामृत [२५ प्रकार गृहस्थको धर्म अर्थ काम इन तीनों पुरुषार्थोंका सेवन परस्परके 'अनुरोधसे करना चाहिये ।। गृहिणी स्थान आलय-जो अपने समान कुलमें उप्तन्न हुई हो; अग्नि, माता, पिता, गुरु और सभ्यजनोंके सामने जिसके साथ विवाह हुआ हो ऐसी सदाचारसे चलनेवाली स्त्रीको गृहिणी कहते हैं; घरकी स्वामिनीका नाम ही गृहिणी हैं । घरमें ऐसी स्त्री होनेसे धर्म अर्थ व काम ये तीनों ही पुरुषार्थ अच्छी तरह सध सकते हैं । जो पतिके साथ किसी १ परस्परानुरोधेन त्रिवर्गो यदि सेव्यते। अनर्गलमतः सौख्यमवर्गोप्यनुक्रमात् ॥ अर्थ-यदि धर्म अर्थ कामका सेवन परस्परके अनुरोधसे किया जाय तो इस भवमें भी निरंतर सुख मिलता है और अनुक्रमसे मोक्षकी प्राप्ति भी होती है। २ अभ्युत्थानमुपागते गृहपतौ तद्भाषणे नम्रता तत्पादार्पितदृष्टिरासनविधौ तस्योपचर्या स्वयं । सुप्ते तत्र शयांत तत्प्रथमतो जह्याच्च शय्यामति प्राज्ञैः पुत्रि निवेदिताः कुलवधूसिद्धांतधर्मा इमे ॥ अर्थ-सीता जिससमय अपनी सुसरालको चलने लगी उस समय राजा जनकने उसको यह उपदेश दिया था कि हे पुत्रि ! अपने पतिके आनेपर उसका सत्कार करनेके लिये उठकर खड़ा होना, जो वह कहे उसे विनयके साथ सुनना, पतिके वैठने पर अपनी दृष्टि उसके चरणोंपर रखना, पतिकी सेवा स्वयं करना, पतिके सोनेके पीछे सोना और उससे पहिले उठना ये सब कुलवधुओंके सिद्धांतकर्म हैं अर्थात् कुलीन स्त्रियोंको अवश्य करना चाहिये ऐसा विद्वान् लोग कहते हैं।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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