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प्रथम अध्याय तो वह आगेके जन्मके लिये अथवा आगामी कालके लिये सुखका साधन नहीं हो सकेगा। यदि वही धन धर्मकार्यों में ल. गादिया जायगा तो उस धनके द्वारा उपार्जन कियेहुये धर्मके संबंधसे आगेके जन्मोंमें भी अनेक तरहके सुखोंकी प्राप्ति होगी। इसीतरह यदि इस भवमें भी धनका उपयोग न किया जायगा अर्थात् कमाये हुये धनसे कामसेवन न किया जायगा तो वह ईंट पत्थरोंकी तरह पडा व गडा रह जायगा और हमारे मरनेके पीछे अवश्यही किसी दूसरेका हो जायगा, उसके कमानेमें जो हिंसा झूठ आदि पाप हमने किये हैं वे केवल हमको ही भोगने पडेंगे । इसलिये मनुष्यको उचित है कि धर्म और कामको यथायोग्य रीतिसे सेवन करताहुआ धन कमावे । अर्थ
और कामको छोडकर केवल धर्मसेवन करना मुनियोंका काम है, | गृहस्थों के पास तो धन होना ही चाहिये, विना धनके गृहस्थधर्म ही नहीं चल सकता परंतु धर्म और कामको सर्वथा छोडकर धन कमाना उचित नहीं है । किसी पुरुषको पूर्वोपार्जित धर्मके प्रभावसे अतुल संपत्ति की प्राप्ति हो और यदि वह उस संपत्तिका कोई भी भाग धर्म कार्यमें खर्च न करै तो वह जीव अगिले जन्ममें इसतरह दुखी होगा १ पादमायान्निधिं कुर्यात्पादं वित्ताय खट्वयेत्। धर्मोपभोगयोः पादं पादं भर्त्तव्यपोषणे॥ गृहस्थ अपने कमाये हुये धनके चार भाग करे, उसमेंसे एक भाग तो जमा रक्खे, दूसरे भागसे वर्तन वस्त्र आदि घरकी
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