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________________ सागारधर्मामृत [१७ अपनी अपनी जातिके अनुसार सदाचाररूप जो द्रव्य कमानेके उपाय हैं उन्हें न्याय कहते हैं, ऐसे लोकमान्य न्यायसे जो द्रव्य कमाया जाता है वह न्यायोपात्त अर्थात् न्यायसे कमाया हुआ कहलाता है । जो द्रव्य न्यायसे कमाया जाता है वह इस लोक और परलोक दोनोंमें सुख देनेवाला होता है क्योंकि उसे इच्छानुसार खर्च करने और भाई बंधु कुटुंब आदिको बांट देनेमें किसी तरहकी शंका नहीं होती। चोरी आदि निंद्य कार्योंसे इकट्ठे किये हुये धनके खर्च करनेमें जैसा भय होता है वैसा भय इसमें नहीं है। जो २ अन्यायसे धन कमाता है उसे राजा भी दंड देता है, लोकमें भी उसका अपमान होता है तथा और भी अनेक तरहके दुःख भोगने पड़ते हैं । इसलिये न्यायसेही धन कमाना चाहिये, इसीसे यह जीव इस लोकमें सुखी रह १-सर्वत्र शुचयो धीराः सुकर्मबलगर्विताः । सुकर्म निहितात्मानः पापा सर्वत्र शंकिताः ॥ अर्थ-जो धीर पुरुष अच्छे काम करनेके बलसे आभिमानी हैं उनका चित्त सब जगह निर्मल रहता है उन्हें कहीं किसी तरहका भय नहीं होता । तथा जो दुराचारी हैं उन पापीयोंको सब जगह शंका (भय) बनी रहती है। २-अन्यायोपार्जितं वित्तं दश वर्षाणि तिष्ठति। प्राप्ते त्वेकादशे वर्षे समूलं च विनश्यति ॥ अर्थ-अन्यायसे कमाया हुआ धन आधिकसे अधिक दश वर्ष तक ठहरता है, ग्यारहवें वर्ष मूलसहित नाश हो जाता है।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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