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________________ विषय । (३३) जिसके स्त्री नहीं है उसे दान देनेका व्यर्थपना विषयसुखोंका उपभोग स्वयं छोड़ देने और दूसरोंसे छुड़ानेका उपदेश दाताओं को कुछ उपदेश दाताओं का कर्तव्य दाताओं के कर्तव्यका समर्थन पात्त्रदानके फलसे उत्पन्न हुये भोगभूमियोंकी अवस्था मुनियोंको कैसा दान देना चाहिये अन्न आदि दानोंके फलोंके दृष्टांत ज्ञान, तप और ज्ञानी तपस्वियोंके पूज्य होनेमें कारण १४६ ६६ मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टियों को पात्र अपात्रको दान देनेका फल मुनियोंको बनाने और वर्तमान मुनियोंके गुण बढ़ाते रहनेकी प्रेरणा इस कालमें मुनि बनाना व्यर्थ है ऐसा कहनेवालोंका समाधान अर्जिका और श्राविकाओंके उपकार करनेका उपदेश कार्यपात्रोंके उपकार करनेका उपदेश दयादत्तिका उपदेश पृष्ठ । श्लोक । 1 १३९ ६१ भरण अपने आश्रित तथा निराश्रित जीवोंका पोषणकर दिनमें भोजन करना और दवाई पानी पान आदि रात्रिमें खा सकने का निरूपण जो भोगोपभोग जबतक प्राप्त न हो सकें तबतक के लिये त्याग करनेका उपदेश . १४० ६२ १४१ ६३ १४२ ६४ १४५ ६५ १४७ ६७ १५२ ६८ १५३ ६९ १५४ ७० १५५ ७१ १५६ ७२ १५७ ७३ १५९ ७४ १५९ ७५ १६२ ७६ १६३ ७७
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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