SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२७) यह मोक्षाभिलाषी जीवोंके द्वारा पठन पाठनमें आती हुई। कल्पान्त कालतक ठहरे । परमार वंशीय महाराज देवपालके पुत्र जैतुगिदेव जिस समय अवन्ती ( उज्जैनमें ) राज्य करते थे, उस समय यह टीका नलकच्छपुरके नेमिनाथ भगवानके चैत्यालयमें वि० संवत् १३०० के कार्तिक मास में पूर्ण हुई। इसमें लगभग बारह हजार श्लोक ( अनुष्टुप् ) हैं। पं० आशाधरके विषयमें जितना परिचय मिल सका, वह हमने पाठकोंके आगे निवेदन कर दिया। इससे अधिक परिचय पानेके लिये आशाधरके दूसरे ग्रन्थोंकी खोज करना चाहिये । मालवामें प्रयत्न किया जावे, तो हमको आशा होती है कि, उनके बहुतसे ग्रन्थ मिले जावेंगे। इस लेखके लिखनेमें हमको सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ पं० गौरीशंकर हीराचन्द ओझासे बहुत कुछ सहायता मिली है, इस लिये हम उनका हृदयसे आभार मानते हैं। - " जैन हितैषी "से उद्धृत ।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy