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________________ - [ ३०९ NNN सागारधर्मामृत रथ, गाडी, हल आदि पदार्थोंको कुप्य कहते हैं । इन पदार्थोंका परिमाण करके कारणवश अधिक होनेपर उन सबका समावेश अपनी नियमित संख्यामें करनेकेलिये समान वर्तनोंको एक जोडी मानना, अथवा छोटेछोटे अनेक वर्तन मिलाकर बडे बनाना, अथवा नियमित समयके अनंतर वापिस लेनेकी इच्छासे दूसरी जगह रखना अथवा किसीको मांगे देदेना आदि परिणामोंसे परिमितिपरिग्रहका अतिक्रमण नहीं करना चाहिये। अतिक्रमण करनेसे चौथा अतिचार होता है। इन पदार्थों की जो संख्या नियत की है यदि किसीतरह उनकी दूनी संख्या हो जाय तो व्रतके भंग होनेके डरसे वह अपने परिणामों में दो दोको मिलाकर उसे एक एक जोडी कल्पना करता है अथवा छोटे छोटे वर्तनोंके बदले बडे बडे बनवा लेता है। इसप्रकार वह अपनी संख्या उतनी ही समझता है इसलिये व्रतका भंग नहीं होता और वास्तवमें व्रतका भंग होता है इसलिये भंगाभंगरूप होनेसे अतिचार माना जाता है । अथवा भावका अर्थ अभिप्राय भी है । केवल अभिप्रायसे वर्तन वस्त्र आदि चीजोंकी संख्या बढालेना अतिचार है जैसे मनमें चाहनेकी इच्छा रखकर चीज लानेवाले आदमीसे कहदेना कि मेरे नियमकी मर्यादा पूर्ण होनेपर ले लूंगा तुम किसी दूसरेको नहीं देना । ऐसी व्यवस्था करदेना भी अतिचार है। गवादौ गर्भत:--द्विपद चतुष्पद आदिके समूहको ग. वादि कहते है। आदि शब्दसे हाथी, घोडे, भैंस आदि चतुष्पद तथा तोता मैना आदि द्विपद और दासी पहरेदार आदि नौकर चाकरोंका ग्रहण करना चाहिये । इन गाय, भैंस, दास
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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