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________________ सागारधर्मामृत [ ३०७ उन्हें केतु और जो दोनोंसे सींचे जाते हैं उन्हें सेतुकेतु कहते हैं । घर और खेत इन दोनों में दीवाल या खेतकी हद्द तोडकर दो तीनको एकमें मिलाकर परिग्रहका परिमाण करनेवाले श्रावकको अतिक्रमण नहीं करना चाहिये । जिस श्रावकन मरणपर्यंत अथवा चतुर्मास आदि किसी नियमित काल पर्यंत देव गुरु आदिकी साक्षीपूर्वक जितना परिग्रहपरिमाणरूप व्रत स्वीकार किया है उसको घरकी दीवाल हटाकर दूसरी जगह खडी करनेसे घरकी मर्यादा नहीं बढानी चाहिये अथवा घरोंकी संख्या भी नहीं बढानी चाहिये । तथा खेतकी हद्द बढाकर उसकी मर्यादा अथवा खेतोंकी संख्या भी नहीं बढाना चाहिये । मैं अपना घर बड़ा करता हूं या खेत बडा करता हूं कुछ घर या खेतकी संख्या नहीं बढाता" ऐसा समझकर हाथ वा गजोंका परिमाण नापते समय नहीं बढा देना चाहिये। क्योंकि ऐसा करनेसे व्रतका भंग होता है और बढानेवाला समझता है कि-" मैंने घर बढाया है घरोंकी संख्या नहीं बढाई तथा खेत बढाया है खेतोंकी संख्या नहीं बढाई " इसप्रकार व्रतका पालन भी होता है । इसप्रकार भंग अभंग रूप होनेसे यह पहिला अतिचार होता है । धनधान्य-धनके चार भेद हैं गणिम, धरिम, मेय, और परीक्ष्य । सुपारी, जायफल आदि गिनकर देनेकी चीजों को गणिम, केशर कपूर आदि अंदाजसे देनेकी चीजोंको धरिम, तेल, घी, नमक आदि मापकर देनेकी चीजोंको मेय और रत्न वस्त्र आदि परीक्षाकर लेने देनेकी चीजोंको परीक्ष्य कहते हैं।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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