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________________ सागारधर्मामृत [२२३ है तब वह उस हिंसाका मनसे चिंतवन नहीं करता और न वचनसे कोई हिंसक शब्द कहता है परंतु वह असेनी जीवके समान केवल शरीरसे ही दुष्ट व्यापार करता है। इसीतरह जब वह मन और कायसे हिंसा नहीं करता न कराता है उससमय वह मनसे भी हिंसाका विचार नहीं करता और न शरीरसे कुछ दुष्ट व्यापार ( क्रिया) करता कराता है परंतु वह वचनसे " मैं इसे मारता हूं वा सताता हूं" आदि शब्द कहता है। इसीप्रकार जब वह वचन और कायसे हिंसा नहीं करता न कराता है उससमय वह केवल मनसे ही हिंसा करने करानेका संकल्प करता रहता है । ऊपर लिखे हुये उदाहरणोंमें मन, वचनसे वा मन कायसे वा वचन कायसे वा तीनोंसे वह करने करानेका त्यागी है इसलिये वह अपनी संमति मन वचन काय तीनोंसे दे सकता है। क्योंकि वह अनुमोदनाका त्यागी नहीं है । जिसप्रकार ऊपर लिखे हुये दो तीन उदाहरण दिखलाये हैं उसीप्रकार बाकीके सब भेद समझलेना चाहिये । इस श्लोकमें ' स्थूलहिंसा आदि पापोंका त्याग' ऐसा कहा है । यह स्थूल शब्द उपलक्षणरूप है अर्थात् इसमें और भी कईप्रकारकी हिंसाका त्याग किया जा सकता है और इसलिये ही " निरपराधी जीवकी संकल्पपूर्वक हिंसाका त्याग - -
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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