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________________ २२२ ] चौथा अध्याय इसप्रकार हिंसा आदि पापोंके त्यागके ऊपर लिखे हुये उनचास भेद हुये।इनके भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यत्काल संबंधी त्याग करनेसे तिगुने अर्थात् एकसौ सेंतालीस भेद होते हैं। जैसे-उनचास प्रकारसे पहिले किये हिंसा आदि पापोंका पश्चात्ताप करना अथवा पहिले किये हुये पापोंका उनंञ्चास तरहसे पश्चात्ताप करना, वर्तमान कालमें उनचास तरहसे हिंसाका त्याग करना और भविष्यत्कालमें इन उनच्चासतरहसे हिंसादि पाप न करनेका निश्चय करना । इसप्रकार त्यागके सब एकसौ सेंतालीस भेद होते हैं। यहांपर अहिंसाव्रतके जो एकसौ सेंतालीस भेद दिखालाये हैं उसप्रिकार सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रहत्याग इन व्रतोंके भी प्रत्येकके एकसौ सेंतालीस भेद जानना । इसप्रकार पांचों अणुव्रतोंके संक्षेपसे सातसौ पेंतीस भेद हुये। ऊपर जो मन वचन कायके भेद दिखलाये गये हैं उनमें से दो दो तीन तनिके कुछ एक भेद लेकर यथासंभव दिखलाते हैं । जो स्थूलहिंसा मनसे वचनसे और कायसे स्वयं नहीं करता न दूसरेसे कराता है तथा जो स्थूल हिंसा मनसे और वचनसे नहीं करता और न कराता है तथा अनुमति भी नहीं देता, अथवा मनसे और शरीरसे, अथवा वचनसे और शरीरसे करता कराता नहीं और न अनुमति देता है इत्यादि । इनमेंसे जब वह मन और वचनसे हिंसा करने करानेका त्यागी
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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