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तीसरा अध्याय
पाक्षिक श्रावककी अपेक्षा अथवा अपनी पहिली अवस्थाकी अपेक्षा स्वयं अधिक विरक्त होगया है और जो धैर्य आदि सात्त्विक भावोंको धारण करता है ऐसा श्रावक दूसरी व्रत प्रतिमा धारण करने योग्य होता है ॥ ३२ ॥
इसप्रकार पंडितप्रवर आशाधरविरचित स्वोपज्ञ ( निजविरचित) सागारधर्मामृतको प्रगट करनेवाली भव्यकुमुदचंद्रिका टीका अनुसार नवीन हिंदीभाषानुवाद में धर्मामृतका बारहवां और सागारधर्मामृतका तीसरा
अध्याय समाप्त हुआ ।