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________________ wwwx २०० ] . तीसरा अध्याय यह लिखा है उसका अभिप्राय यह है कि यदि वह किसी दायादके मरने पर यथायोग्य न्याय और नीतिके अनुसार उसका धन ले तो उसमें उसे कोई दोष नहीं है ॥२१॥ आगे-पापर्द्धित्यागवतके ( शिकार खेलनेके त्यागके ) अतिचार छोडनेके लिये कहते हैं वस्त्रनाणकपुस्तादिन्यस्तजीवच्छिदादिकं । न कुर्यात्त्यक्तपापर्द्धिस्तद्धि लोकेऽपि गर्हितं ॥ २२ ॥ अर्थ-जिसने शिकार खेलने का त्याग कर दिया है ऐसे श्रावकको पंचरंगे वस्त्र, रुपया, पैसा, आदि मुद्रा, पुस्तक, | काष्ठ, पाषाण, धातु, दांत आदिमें नाम निक्षेप अथवा " यह वही है " इसप्रकारके स्थापना निक्षेपसे स्थापन किये हुये हाथी घोडे आदि जीवोंका छेदन भेदन आदि कभी नहीं कर ना चाहिये । क्योंकि वस्त्र पुस्तक आदिमें बनाये हुये जीवोंका | छेदन भेदन करना केवल शास्त्रोंमें ही निंद्य नहीं है किंतु लोकव्यवहारमें भी निंद्य गिना जाता है ।। २२ ॥ आगे-परस्त्रीत्यागवतके अतिचार छोडनेके लिये कहते हैं कन्यादूषणगांधर्वविवाहादि विवर्जयेत् । परस्त्रीव्यसनत्यागवतशुद्धिविधित्सया ॥ २३ ॥ अर्थ-परस्त्री त्याग करनेवाले दर्शनिक श्रावकको परस्त्री व्यसनके त्यागरूप व्रतको शुद्ध रखनेकी इच्छासे किसी कुमारी
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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