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________________ . सागारधर्मामृत घटमान योगी (जिसे योगका अच्छा अभ्यास है) और निष्पन्न योगी ( जिसका योग पूर्णताको प्राप्त हो गया है ) ऐसे तीन प्रकारका कहलाता है उसीप्रकार अरहंतको ही शरण माननेवाले जिसकिसी सज्जनका देशसंयम, प्रारब्ध, घटमान और निष्पन्न ऐसे तीन प्रकार है उनको धारण करनेवाला वह देशसंयमी, प्रारब्धदेशसंयमी (जिसने देशसंयम प्रारंभ वा स्वीकार किया है और जो नैगम नयसे देशसंयमी गिना जाता है ), घटमान देशसंयमी (जिसे देशसंयमका अच्छा अभ्यास है) और निष्पन्नदेशसंयमी (जिसका देशसंयम पूर्णताको प्राप्त हो चुका है) ऐसे तीन प्रकारका कहलाता है भावार्थ--देशसंयमके प्रारब्ध घटमान और निष्पन्न ऐसे तीन भेद हैं और उनके धारण करनेवाले भी क्रमसे प्रारब्ध, घटमान और निष्पन्न कहलाते हैं । जो देशसंयमको पालन करना प्रारंभ करता है उसको पारब्ध कहते हैं, जिसे पालन करनेका अच्छा अभ्यास हो जाता है उसे घटमान कहते हैं और जिसका देशसंयम पूर्ण हो जाता है उसे निष्पन्न कहते हैं ॥७॥ इसप्रकार प्रतिमाओंकी विशुद्धता कह चुके। अब आगे--दर्शनिकका स्वरूप कहनेके लिये दो श्लोक कहते है पाक्षिकाचारसंस्कारदृढीकृतविशुद्धदृक् । भवांगभोगनिर्विण्णः परमेष्ठिपदैकधीः ॥७॥
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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