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________________ सागारधर्मामृत [१६१ आयु आदि अनेक लोकोत्तर ( उत्कृष्ट ) गुणोंको प्राप्त होता है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों ही पुरुषार्थ जीवित रहनेपर सिद्ध हो सकते हैं इसलिये जीवन अर्थात् अभयदान देनेवालोंको कौन कौनसे इच्छानुसार पदार्थ प्राप्त नहीं होते है? अर्थात् सब ही होते हैं। भावार्थ-अभयदान देना सबसे उत्तम दान है।७५॥ आगे--पहिले जो कर्म धर्म्य इत्यादि २३ वें श्लोकमें कहा था उसीका कुछ विस्तार करते हैं उसमें भी अपने आश्रित लोगोंको पोषण और निराश्रित लोगोंको करुणाबुद्धिसे दान देकर दिनमें भोजन करना चाहिये और पानी आदि चीजोंका वह रात्रिमें भी त्याग नहीं कर सकता येही सब बातें दिखलाते हैं सौरूप्यमभयादाहुराहाराद्भोगवान् भवेत् । आरोग्यमौषधाज् ज्ञेयं श्रुतात्स्थातश्रुतकेवली ॥ अर्थ-अभयदानसे सुंदररुप आहारदानसे भोगोपभोग और औषधदानसे आरोग्य मिलता है तथा शास्त्रदान अर्थात् विद्यादान देनेसे श्रुतकेवली होता है। ___मनोभूरिव कांतांगः सुवर्णाद्रिरिव स्थिरः । सरस्वानिव गंभीरो विवस्वानिव भासुरः ॥ आदेयः सुभगः सौभ्यस्त्यागी भोगी यशोनिधिः। भवत्यभयदानेन चिरजीवी निरामयः ॥ अर्थ-अभयदान देनेवाला मनुष्य कामदेवके समान सुंदर, मेरुपर्वतके समान स्थिर, समुद्रके समान गंभीर, सूर्यके समान तेजस्वी, प्रभावशाली शरीर धारण करनेवाला, सबको प्रिय, शांत, त्यागी, भोगी, यशस्वी, चिरजीवी और नीरोग होता है।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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