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दूसरा अध्याय क्योंकि उनके बनबानेसे बडा भारी धर्मानुबंध होता है अर्थात् जिसे धर्मका लाभ नहीं है उसे धर्मका लाभ होता है, जिसे लाभ हुआ है उसके धर्मकी रक्षा होती है और जिस धर्मकी रक्षा हो रही है उसकी वृद्धि होती है । ये सब काम जिनमदिर आदि धर्मायतनोंसे ही होते हैं तथा इन्हीं धर्मायतनोंसे जिनमें प्रायः हिंसा होती है ऐसे खेती व्यापार आदि आरभोंमें निरंतर लगे रहनेवाले गृहस्थोंका मन पुण्यको बढानेवाला और पवित्र निर्मल चैतन्यरूपै ज्ञानको प्रगट करनेवाला होता है। अर्थात् खेती व्यापार आदि करनेवाले गृहस्थ भी जिनमंदिर आदि धर्मायतनोंसे ही अपना पुण्य बढासकते हैं अथवा अपना निर्मल ज्ञान प्रगट कर सकते हैं । इसके सिवाय जिनमंदिर स्वाध्यायशाला आदि तथा इन्हींके समान तीर्थयात्रा आदि जो जो सम्यग्दर्शनको विशुद्ध करनेवाले साधन है, उनकी दृढता वा मजबूती होनेसे चित्तमें अहंकारसे आत्मगौरवसे भरा हुआ
और हिंसासे पाप उत्पन्न होता है तथापि जिनमंदिर पाठशाला स्वाध्यायशाला आदिके बनवाने में मिट्टी पत्थर पानी लकडी आदिके इकडे करनेसे आरंभ करनेवाला पुरुष महा पुण्यका अधिकारी होता है। .
निरालंबनधर्मस्य स्थितिर्यस्मात्ततः सतां । मुक्तिप्रासादसोपानमातैरुक्तो जिनालयः ॥ अर्थ-जिन जिनमंदिरोंमें आधाररहित धर्मकी स्थिति बनी हुई है इसलिये वे जिनमंदिर सज्जनपुरुषोंको मोक्षरूपी महलपर चढनेकलिये सीढीके समान हैं ऐसा जिनेंद्रदेवने कहा है।