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________________ १०२ ] दसरा अध्याय हो जाता है । विधिपूर्वक अखंड अक्षतोंके द्वारा पूजा करने से पूजा करनेवालेका ऐश्वर्य तथा अणिमा महिमा आदि विभूति निरंतर बनी रहती है । श्री अरहंतदेव के चरणकमलों में विधिपूर्वक पुष्पमाला चढानेसे चढानेवालेको स्वर्ग में कल्पवृक्षोंकी मालायें प्राप्त होती हैं । विधिपूर्वक नैवेद्य से पूजा करनेवाला अनंत लक्ष्मीका स्वामी होता है । विधिपूर्वक दीपकी आरति करनेवाले की कांति बढ जाती है । अरहंतदेव के चरणकमलों में विधिपूर्वक धूप चढानेसे परम सौभाग्यकी प्राप्ति होती है, अनार बिजोरा आदि फळ चढानेसे पूजा करनेवालेको इच्छानुसार फलकी प्राप्ति होती हैं और विधिपूर्वक अर्घ अर्थात् पुष्पांजलि चढानेसे पूजा करनेवालेको विशेष आदर सत्कार की प्राप्ति होती है अथवा वह संसारमें पूज्य माना जाता है । अथवा पूजा करनेवालेको गाना बजाना नृत्य करना आदि जो जो अच्छा लगता है उसीसे विधिपूर्वक श्री जिनेंद्रदेवकी पूजा करनेसे उस मनुष्यको उसी वस्तुकी प्राप्ति होती है । अभिप्राय यह है कि जिस किसी उत्तम वस्तुसे विधिपूर्वक जिनेंद्र देवकी पूजा की जाती है पूजा करनेवालेको वैसी ही उत्तम उत्तम वस्तुओं की प्राप्ति होती है। भगवानकी की हुई पूजा कभी निष्फल नहीं होती ॥३०॥ आगे-- श्री जिनेंद्रदेव की पूजाकी उत्तम विधि और उससे होनेवाले लोकोत्तर विशेष फलको कहते हैं
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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