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तीसरा अध्याय 119. निशिभोजनं तु परिग्रहलक्षणे ......... चानता ववितम्। वही, पृ० 42 120. वही, 5, का० 62, की टीका, पृ० 42 121. प्रशमरति प्रकरण, 15, का० 244, पृ० 169 122. वही, 16, का० 245 की टीका, पृ० 169-70 123. शीलांग सहस्त्राष्टादशकम् यत्नेन साधयति । वही, 15, का० 244, पृ० 169 124. वही, 17, का० 250-255, पृ० 173-175 125. वही, 18, का० 256, पृ० 176126 ।। 126. वही, 18, का० 158, पृ० 177 127. वही, 18, का० 259, पृ० 177 128. वही, 18, का० 260-262, पृ० 178-79 129. सर्वोद्धातितमोहो ........... पूर्णचन्द्र इव। प्रशमरति प्रकरण, 18, का० 159, पृ०
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130. वही, 18, का0 260-262, पृ० 178-79 131. क्षीण चतुः कर्माशो ......... पूर्व कोटिवा। वही, 18, का0 271, पृ० 185 132. तेनाभिन्न ........... नाम गो च। वही, 18, का0 272, पृ० 272, पृ० 186। 133. समुद्धाता निवृत्तोथ ........... मुनि स्येति। प्रशमरति प्रकरण, 19, का० 227, पृ०
189 134. वही, 20, का० 280, पृ० 194 135. वही, 20, का० 281, पृ० 194 136. वही, 21, का० 289, पृ०194 137. वही, 21, का० 291, पृ० 201 138. वही, 21, का० 292-293, पृ० 202.. 139. पूर्वप्रयोगस्तृतीये शुक्लथ्याने .............तस्मादूर्ध्वमेव गच्छति मुक्तारमेति प्रशमरति ___प्रकरण, 21, का 294 की टीका, पृ० 203 । 140. सोधर्मादिष्वन्यतमकेषु ........... महाथुितिवपुष्कः वही, 21, का० 298, पृ० 205 141. वही, 22, का० 299-301, पृ० 206-207 142. स एवं सुख परंपरयो सिद्धि मेष्यति। अष्टानां भवानाभगम्यन्तरे नियमेनेवेति । -