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तीसरा अध्याय 72. तत्रात्तरोनेपिचतुर्विधम् । वही, 9, का 176 को टीका, पृ० 121 73. शतमिति दुःख संक्लेशः, तत्र भवमार्तमिति। वही, 1, का० 20 की टीका, पृ० 17 74. वही, 9, का० 176 की टीका, पृ० 121 75. रुद्र कूरो नृशंसः, तस्यैद रौद्रम। वही, ।, का0 20 की टीका, पृ० 42 76. यदपि चतुर्था । - प्रशमरति प्रकरण, ।, का 20 की टीका, पृ० 17 77. थर्मोदनपेतं धय॑। वही, 9, का० 176 की टीका, पृ० 121 78. आज्ञापाय विपाक संस्थान विचय भेदाच्चतुर्विधम् । वही, 5, का० 59 की टीका, पृ० 42 79. आप्तवचनं प्रवचनं चाज्ञा विचयस्तदर्थ निर्णयनम्। वही, 17, का० 247, पृ० 172 80. आम्नव विकथा गौरव परीषहाथेष्वपायस्तु। प्रशमरति प्रकरण, 17, का० 248, पृ०
172 81. वही, 17, का० 149, पृ० 173 82. वही, पृ० 173 83. द्रव्य क्षेत्राकृत्यनुगमनं संस्थान विचयस्तु। वही, 17, का० 249, पृ० 173 84. वही, पृ० 173 85. वही, 18, का० 250-258, पृ० 173-177 86. शत् शोको ............ तल्लुनाति विच्छेदयतीति शुक्लम्। प्रशमरति प्रकरण, 9, का०
176 की टीका, पृ० 122 87. शुक्लमव्यत्यन्त विशुद्धा। वही, 5, का, 59 की टीका, पृ० 42 88. तचर्वधम् ............. व्युपरतक्रियमनुवर्तनम् । प्रशमरति प्रकरण, 1, का0 196 की
टीका, पृ० 42 89. तत्वार्थसार, 7, श्लोक 45-50, पृ० 186-187 90. वही, पृ० 186-187 91. प्रशमरति प्रकरण, 20, का० 280, पृ० 194 92. विगतक्रियममनिवर्तित्वमुत्तरं ध्यायति परेण। वही, पृ० 194 . 93. शुक्लध्यानावद्वयमवाण्य मोहम्। वही, 18, का० 259, पृ० 177 94. सिद्धि क्षेत्रे विमले............. साकारेणोपयोगेन। प्रशमरति प्रकरण, 21, का० 288,
पृ० 1981 95. वही, 9, का 176 की टीका, पृ० 122