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71. वही
दूसरा अध्याय
72. वही, 11, का० 204, पृ० 141
73. वही, 11, का० 202 को हरिभद्रीय टीका, पृ० 139
74. वही, 11, का० 204, पृ० 141
75. प्रशमरति प्रकरण, ११, का० 206 की हरिभद्रीय टीका, पृ० 144
76. वही, 11, का० 204, पृ० 141
77. प्रशमरति प्रकरण, 11, का० 205 का भावार्थ, पृ० 144
78. वही, 11, का० 206, पृ० 144
79. प्रशमरति प्रकरण, 11, को० 206 को हरिभद्रीय टीका, पृ० 144
80. प्रशमरति प्रकरण, 11, का० 200, पृ० 138
81. प्रशमरति प्रकरण, ११, का० २०७, पृ० १४५
82. धर्माधर्माकाशान्येकेकमतः परं त्रिकमनन्तम् । प्रशमरति प्रकरण, 14, काo 214, पृ० 150
83. कालं विनास्तिकाया । प्रशमरति प्रकरण, 14, का० 214 पृ० 150
84. प्रशमरति प्रकरण, 14, का० 213, पृ० 149
85. जीवमृते चाडण्यकतृणि 11 प्रशमरति प्रकरण, 14, का० 214, पृ० 150
86. जीवा इति संभवन्तः....
जीविष्यन्ति चेति जीवाः । प्रशमरति प्रकरण, 10, का०
189 को हरिभद्रीय टीका, पृ० 131
87. प्रशमरति प्रकरण, 11, का० 194, पृ० 134
88. वही, 14, का० 214, पृ० 150
89. वही, 11, का० 207, पृ० 145
90. असंख्ये अकद अप्रदेशे जीवः । वही, का० 207 को टीका, पृ० 145
91. प्रशमरति प्रकरण, 14, का० 213, पृ० 149
92. जीवस्तु कर्ता शुभाशुभानां कर्मणामिति । वही, 14, का० 214 की हरिभद्रीय टीका, पृ० 150
93. जीव मुक्ताः संसारिणश्च । वही, 11, का० 190, पृ० 132
94. वही, 11, का० 190, पृ० 132
95. प्रशमरति प्रकरण, 11, का० 192, पृ० 133
96. भावा भवन्ति...
क्षयोपशमजश्य पंचैते। वही, 11, का० 193, पृ० 133