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दूसरा अध्याय जीव द्रव्य
संसारी
मुक्त
त्रस
स्थावर
.
एकेन्द्रिय
द्विन्द्रिय
त्रीन्द्रिय
चतुरेन्द्रिय
पंचेन्द्रिय
जलकायिक
वायुकायिक
अग्निकायिक
वनस्पतिकाय.
पृथ्विकाय
जीव के उपकार : __ सम्यक्त्व, ज्ञान, चरित्र, वीर्य और शिक्षा - ये जीव के उपकार हैं, क्योंकि ये तत्वार्थ श्रद्वान् रुप सम्यक्त्व को उत्पन्न करते हैं, शास्त्रों को पढ़ते, चारित्र का पालन तथा उपदेश करते हैं, शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। इसलिए सम्यक्त्व आदि जीव के उपकार हैं 98।
इस प्रकार सम्यग्दर्शन से युक्त आत्मा जो ज्ञान रुप परिणाम तत्वार्थ के श्रद्धान से युक्त होता है, उसे ज्ञानात्मा कहते हैं, इसलिए सम्यग्दृष्टि की आत्मा ज्ञानात्मा होती है। सब जीवों के दर्शनात्मा होती हैं, क्योंकि सभी जीवों में चक्षु आदि दर्शन पाया जाता है। व्रतियों के चारित्रात्मा होती है और सब संरी जीवों के वीर्यात्मा होती है। वीर्य शक्ति को कहते है। शक्ति सभी जीवों में पाई जाती है। अतः समस्त संसारी जीवों के वीर्यात्मा होती है। इस प्रकार जीवों के चार उपकार अत्यंत महत्वपूर्ण है 991
पुद्गल द्रव्य :
पुद्गल द्रव्य का अर्थ जैन दर्शन में वही है, जो अन्य भारतीय दर्शनों में भौतिक द्रव्य या