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प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन
42 आचार्य उमास्वाति ने जीव की व्युत्पति करते हुए बतलाया है कि जो दस प्रकार के द्रव्य और भाव प्राणों (पाँच इन्द्रिय+मन-वचन-काय तीन बल+एक आयु+एक श्वासोच्छवास) से वर्तमान समय मे जीता है, भूतकाल में जीता था और भविष्य में जो जीता रहेगा, उसे जीव कहते हैं 861
प्रशमरति में उमास्वाति ने जीव लक्षण उपयोग बतलाया है। उपयोग आत्मा के चेतन का परिणाम है। जिस जीव में उपयोग गुण है, वह जीव है और जिसमें यह गुण नहीं पाया जाता है, वह अजीव है। इस प्रकार उपयोग से जीव की पहचान होती है। इसलिए उपयोग ही जीव का लक्षण है। उपयोग दो प्रकार का है - ज्ञानोपयोग एवं दर्शनोपयोग 87 ।
जीव द्रव्य अस्तिकाय गुणवान है 88 । इसमें स्पर्श, रस, गन्ध एवं वर्ण न होने के कारण अमूर्तिक है 89। यह असंख्यात प्रदेशी है 90 और समस्त लोक में व्याप्त है, परन्तु सभी जीवों को इतना विस्तार नहीं प्राप्त होता। जिस प्रकार यदि पद्मराग मणि को दूध में डाल दिया जाय तो दूध के परिणाम के प्रमाण में उसका प्रकाश होता है, इसी प्रकार जीवात्मा जिस शरीर में रहता है उसी के अनुसार प्रकाशक होता है। जैसे एक देह में आरम्भ से अन्त तक एक ही जीव रहता है, उसी प्रकार सर्वत्र सांसारिक अवस्थाओं में जीव रहता है। यद्यपि जीव गृहीत शरीर से अभिन्न सा दिखाई देता है, पर वास्तव में देह और जीव भिन्न-भिन्न हैं। जीव की स्थिति लोक के असंख्यातवें भाग आदि में होती हैं, क्योंकि प्रदीप की भांति जीव के प्रदेशों का संकोच-विस्तार होता है । वह शुभ-अशुभ कर्मों का कर्ता और भोक्ता है ।
जीव द्रव्य के भेद :
उमास्वाति ने संक्षेप में जीव के दो भेद बतलाये हैं (१) मुक्त (२) संसारी। जो जीव अष्ट कर्मों से मुक्त हो गये हैं, अर्थात् जिन्हें संसार में उत्पन्नमरणादि पूर्वक संसरण नहीं करना पड़ता है, वे मुक्त जीव हैं इसलिए ये भेद रहित हैं। जो आठ प्रकार के कर्मों से युक्त होने के कारण संसार में सदैव जन्म, मरणपूर्वक भ्रमण करते रहते हैं, वे संसारी जीव हैं ।
संसारी जीव के भेद :
काय की अपेक्षा संसारी जीव के दो भेद हैं - त्रस और स्थावर । त्रस के पाँच भेद हैं 94एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय। स्थावर के भी पाँच भेद हैं - पृथ्वीकाय, जलकायिक, वायुकायिक, अग्निकायिक एवं वनस्पतिकाय 951
भाव की अपेक्षा जीवं के पाँच भेद हैं 96। स्थिति, अवगाह, ज्ञान, दर्शन आदि पर्यायों की अपेक्षा जीव के अनेक भेद हैं 971