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दूसरा अध्याय नित्यानित्य की अपेक्षा : .. नित्य - अनित्य की अपेक्षा द्रव्य दो प्रकार का है - (1) नित्य (2) अनित्य । नित्य द्रव्य :
जो द्रव्य अपने भाव से च्युत न हो वही नित्य है। जैसे - धर्म, अधर्म, आकाश, काल।
अनित्य द्रव्य :
जो द्रव्य अपने भाव को छोड़ देता है, वह अनित्य है। जीव और पुद्गल अनित्य द्रव्य हैं, क्योंकि इनमें व्यंजन पर्यायें पायी जाती है जो सदैव बदलती रहती है।
द्रव्य
नित्य
अनित्य
अथर्म
आकाश
काल
धर्म
जीव
अस्तिकाय और अनास्तिकाय की अपेक्षा :
अस्तिकाय और अनास्तिकाय की अपेक्षा द्रव्य दो प्रकार के होते हैं (1) अस्तिकाय (2) अनास्तिकाय। अस्तिकाय और अनास्तिकाय :
जिस द्रव्य के प्रदेश बहुत होते हैं, वह अस्तिकाय द्रव्य है अर्थात् बहुप्रदेशी द्रव्य को अस्तिकाय कहते हैं और एक प्रदेशी को अनास्तिकाय कहते हैं। जीव, धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल - ये सभी अस्तिकाय द्रव्य हैं, क्योंकि ये बहुप्रदेशी होते हैं। पुद्गल द्रव्य एक प्रदेशी है, परन्तु परमाणु शक्ति की अपेक्षा अस्तिकाय कहलाता है। अर्थात् स्कन्ध रुप होने पर वह बहुप्रदेशी हो जाता है, इसलिए उसे उपचार से अस्तिकाय ही कहा जाता है। केवल काल द्रव्य अनास्तिकाय है, क्योंकि वह एक प्रदेशी होता है ।