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________________ प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन मुक्त स्थान में मुक्त जीव के अवस्थान का अभाव : 104 प्रशमरति प्रकरण के टीकाकार आचार्य हरिभद्र ने बौद्ध दार्शनिकों के इस मंतव्य का कथन किया है कि मुक्त जीव जिस स्थान से मुक्त होता है, उसी स्थान पर अवस्थित रहता है, क्योंकि उसमें संकोच - विकास तथा गति के कारणों का अभाव होता है। अतः वह न तो किसी दिशा और विदिशा में गमन करता है और न उपर और न नीचे हो जाता है। वह सांकल आदि से मुक्त हुए किसी प्राणी की तरह ही उसी स्थान पर अवस्थित रहता है। आगे टीकाकार ने उनके मत का निराकरण करते हुए बतलाया है कि मुक्तात्मा मुक्त हुए स्थान पर एक क्षण भी अवस्थित नहीं रहती है, बल्कि अपनी स्वाभाविक उर्ध्वगमन शक्ति के कारण उर्ध्वगमन करती है । यदि जीव का उर्ध्वगमन न मानकर उसे यथास्थान अवस्थित माना जाय, तो पुण्यात्मा एवं पापात्मा का स्वर्ग-नरक गमन सिद्ध नहीं हो सकेगा और परलोक भी असिद्ध हो जायेगा। अतः सिद्ध है कि देह त्याग के स्थान में आत्मा अवस्थित नहीं होती है । मुक्त जीव के उर्ध्वगमन का कारण : प्रशमरति प्रकरण मे जीव का कर्मक्षय और उर्ध्वगमन एक साथ होता है, ऐसा बतलाया गया है। मुक्त आत्मा का अधोगमन तथा तिर्यक - गमन क्यों नहीं होता है? इसका निराकरण करते हुए बतलाया गया है कि जीव को अधोलोक तथा तिर्यक दिशा में गति करानेवाला कारण कर्म ही होता है और उसका मुक्त जीव में अभाव होता है, इसलिए मुक्त जीव तिर्यक या अथो दिशा में गमन करके स्वाभाविक गति से उर्ध्वगमन करता है । ग्रन्थकार आचार्य उमास्वाति ने मुक्त जीव के उर्ध्वगमन के हेतुओं का दृष्टांत सहित उल्लेख किया है, जो निम्नांकित है 10 : पूर्वप्रयोगात्, अविरुद्व कुलालचक्रवत् : जिस प्रकार कुम्भकार अपने चक्र को घुमाने के बाद डन्डा हटा लेता है, फिर भी पुराने संस्कारों के कारण चक्का घूमता रहता है, उसी प्रकार संसारी जीव ने मुक्त होने के पहले मुक्ति के लिए अनेक बार प्रणिधान और प्रयत्न किये थे। अतः मुक्त होने में प्रणिधान और प्रयत्न न होने पर भी पूर्व के संस्कारों के वर्तमान होने से मुक्त जीव उर्ध्वगमन करता है । अतः उर्ध्वगमन का एक कारण पुराने संस्कारों का होना ही है। असंगत्वात्, व्यपगत लेपातुम्बवत् : मुक्त जीव के उर्ध्वगमन का दूसरा कारण कर्मों के भार का नष्ट होना है। जिस प्रकार मिट्टी से लिप्त तुम्बी पानी में मिट्टी के भार के कारण डूबी रहती है, उसी प्रकार कर्मों के भार के कारण जीव दबा रहता है। तुम्बी के ऊपर लिप्त मिट्टी जब पूर्णतया पानी में घुल जाती है, तब वह तुम्बी पानी के ऊपर आ जाती है, उसी तरह कर्म बन्धन के कट जाने
SR No.022360
Book TitlePrashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManjubala
PublisherPrakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
Publication Year1997
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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