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प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन
96 होते हैं और रागादि परिणामों से नवीन कर्मों का बन्ध होता है और इन नवीन कर्मों के कारण उसे नरकादि चार गतियों में भ्रमण करना पड़ता है। इन गतियों में जीव के जन्म ग्रहण करने पर उससे शरीर, शरीर से इन्द्रियाँ और इन्द्रियों से विषयों का ग्रहण और विषयों के ग्रहण से राग-द्वेष परिणाम होते हैं और पुनः उन राग-द्वेष से कर्मों का बन्ध होता है। इस प्रकार राग-द्वेष ही कर्मबन्थ के प्रमुख कारण हैं, इनसे कर्मों का प्रवाह बना रहता है। ममकार और अहंकार ही राग द्वेष है। राग-द्वेष को मिथ्यादर्शन मोहनीय कर्म रुप राजा का सेनापति बतलाया गया है, क्योंकि इन्हीं से कषाय और नोकषाय उत्पन्न होता है। प्रशमरति प्रकरण के कर्ता आचार्य उमास्वाति ने राग-द्वेष रुप कषाय को तेल की तरह चिकना मानकर दृष्टांत द्वारा सिद्ध किया है कि रागादि-रुप-स्निग्धता ही कर्म रुप रज के आत्मा-प्रदेशों मे चिपकने का प्रमुख कारण है 67। आत्मा और कर्म में निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध :
रागादि से कर्मबंध होता है और कर्मबंध रागादिक परिणाम होते हैं। इसलिए आत्मा और कर्म में अनादिकाल से निमित्त नैमित्तिक संबंध है 68 । इन दोनों में जो कमजोर होता है, उसे बलवान् अपने अनुकूल कर लेता है। - जीव और कर्म में निमित्त-नैमित्तिक संबंध होने से इतरेतराश्रय नामक दोष भी नहीं आता हैं, क्योंकि वे परस्पर में एक दूसरे पर आश्रित नहीं हैं। आत्मा के साथ कर्म अनादिकाल से सम्बद्ध है। अतः उसी पूर्वबद्ध कर्म के कारण नवीन कर्म आते हैं 69 नवीन कर्मों के उदय से जीव को नरकादिक गतियों में जाना पड़ता है। परकादिक गतियों में जाने से शरीर बनता है और इसमें इन्द्रियाँ होती हैं जिनमें विषय को ग्रहण करने की शक्ति होती है और विषय-ग्रहण करने से सुख-दुःख होते हैं 70 ।
मोह से अन्या हुआ जीव अच्छे-बुरे का विचार न करके सुख की प्राप्ति के लिए जो भी काम करता है, वह उसके दुःख के ही कारण होते हैं। जैसे जो मनुष्य स्पर्शेन्द्रिय के विषय में आसक्त है, वह प्रिया के शरीर आलिंगन से पागल हुए मूर्ख हाथी के समान बन्ध को प्राप्त होता है और जो मनुष्य रसनेन्द्रिय के विषयों में आसक्त है, वह लोहे के यंत्र या जाल में फँसे हुए मीन के समान नाश को प्राप्त होता है। जिस प्रकार धीवर लोहे के काँटे को जल में डालता है और उसमें लगे हुए मांस के खाने के लोभ में आकर मछली मृत्यु के मुख में चली जाती है, उसी प्रकार रसना इन्द्रिय के विषयों के लोभ में पड़कर यह प्राणी भी विपत्ति में फँस जाता है 21
जो मनुष्य घ्राणेन्द्रिय के विषय में आसक्त होकर पागल हो जाता है, वह भौरे के समान मृत्यु को प्राप्त होता है। जिस प्रकार भौंरा कमल की सुगन्ध से आकृष्ट होकर उसके भीतर बैठकर उसकी गन्ध लिया करता है जब सूर्य डूब जाता है तो कमल बंद हो जाता है और उसके बन्द होते ही भौरा भी उसके अन्दर बंद हो जाता है जिससे वह मृत्यु को प्राप्त होता