________________
प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन
92
योग :
मन, वचन और काय के द्वारा होने वाले आत्म- प्रदेशों का परिस्पन्दन को योग कहते हैं 31 | मन-वचन और काय की अपेक्षा से योग के तीन भेद है 32 ।.
इस प्रकार बंध के चार भेदों में से प्रदेश बंध योग से होता है। अर्थात् मन-वचन-काय योग के कारण आत्मा के प्रदेशों में ज्ञानावरण आदि पुद्गल कर्मों का संचय होता है और कषाय के कारण उन बंधे हुए कर्मों का अनुभवन ( विपाक) होता है तथा जिस प्रकार की लैश्या होती है । उसी प्रकार का उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य स्थिति बंध होता है । तद्नुसार ही उसमें रस शक्ति पड़ती है 33 ।
प्रशमरति प्रकरण में कर्म बंध की स्थिति को दृढ़ करनेवाली क्रियाओं का कथन करते हुए बतलाया गया है कि लेश्या कर्म बंध की स्थिति को उसी प्रकार दृढ़ करनेवाली होती है जिस प्रकार सरेस द्वारा रंग पक्का एवं स्थायी हो जाता है 34 |
लेश्या का स्वरुप :
प्रशमरति प्रकरण में परिणाम विशेष को लेश्या कहा गया है, 35 क्योंकि शरीर और वचन का व्यपार मन के परिणाम की अपेक्षा से तीव्र होता है तथा तीव्र होने से अशुभ होता है। आशय यह है कि लेश्या मन में होने वाले भावों की दशा का नाम है। किन्तु अन्य आचार्य कायिक और वाचनिक क्रिया को भी लेश्या कहते हैं। उनका कहना है कि मनुष्य जब कुछ करता या बोलता है, तब उसके करने या बोलने में मन के भावों की ही मुख्यता रहती है। मन में यदि कोध होता है, तो उसकी शारीरिक क्रिया और वाचनिक क्रिया में बराबर उसका असर पाया जाता है। अतः योग परिणाम को लेश्या" कहते हैं। जिस प्रकार दिवार आदि पर चित्रों को स्थायी बनाने के लिए रंगों में सरेस डालने से रंग पक्का एवं स्थायी हो जाता है, उसी प्रकार ये लेश्यायें कर्म बंध की स्थिति को पक्का व स्थायी करती है 7 ।
लेश्या के भेद :
प्रशमरति प्रकरण में लेश्या के छह भेद बतलाये गये हैं- कृष्ण, नील, कापोत, तैजस, पद्म और शुक्ल । इन लेश्याओं में से कृष्ण, नील और कपोत लेश्या रुप तीव्र परिणामों से कर्मों की स्थिति अति दीर्घ और दुःखदेने वाली होती है. तथा तैजस, पद्म और शुक्ल लेश्या . शुभ कर्मों की स्थिति अधिक शुभ फलदायी होती है। ये तीनों लेश्याएं उतरोत्तर विशुद्धतम होती हैं 39 1
इस प्रकार उक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और योग कर्म हेतु में सहायक हैं। इनकी सहायता से राग-द्वेष आठ प्रकार के कर्मबन्ध के करण होते हैं 40 | रागादि और कर्म बन्ध का परस्पर में निमित नैमित्तिक संबंध है । अर्थात् रागादि से कर्मबंध
}