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॥ चतुर्विशतिदंडकवर्णनम् ॥ (७) चित्र-विचित्र-यमक- समक-कंचनगिरि-वैतादयः वक्षस्कार विगेरे वर्वतोमा वसे छे अने अनादि पदार्थोमा रसादिकनी हीनाधिकता करवानी जूभना--चेष्टावाला होवाथी तिर्यगजभक कहेवाय छ. ए प्रमाणे ( १०-१०-१०-१२-१३-७--९-१६-१० ) उत्तरभेदो ९७ तथा ८ मूळभेदो मळी १०५ प्रकारना व्यन्तर देवो कहा. तथा ५ प्रकारना अथवा १० प्रकारना ज्योतिपी देवो छे तेनां नाम-चंद्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र-ने तारा ए ५ मूळ ज्योतिषी देवो छे, ते पण दरेक २॥ द्वीपमा चर-चालता छ, ने २॥ द्वीप बहार स्थिर छे. माटे चर अने स्थिर ए बे भेदवडे गुणतां १० भेद थया. दरेक चंद्र इन्द्रनी आज्ञामां रहेनार अने पाछळ पाछळ चालनार अथवा साथे रहेनार दरेक चंद्रना ८८ ग्रह-२८ नक्षत्र-ने ६६९७५ कोडा कोडि तारा छे, अने सर्व चंद्र तथा सर्व मूर्य असंख्य असंख्य छे. छतां जातिभेदे ५ अथवा १० गणाय छे. पुनः ए ८८ ग्रह विगेरे जे चंद्रनो परिवार कह्यो तेज सूर्यनो परिवार पण छे, परन्तु सूर्य इन्द्रनो परिवार जुदो नथी, अर्थात् एक जातना परिवार उपर बे इन्द्रोनी आज्ञा छ, अथवा बे इन्द्रोनो भेगो एकन परिवार छे. तेमां पण मूर्य इन्द्र करतां चन्द्र इन्द्र मोटो महडिकने पुन्यवान् बळवान् गणाय छे, माटे.सामान्य रीते ग्रहादि चन्द्रनो परिवार के एम विशेष प्रसिद्धि छे.
तथा 'वेमाणी-वैमानिक देवोना मूळ कल्प अने कल्पातीत एम बे भेदो छ, उत्तरभेदो २६ अथवा ३८ भेद छे-तेमां १२ कल्प ने १४ कल्पातीत देवो मळो २६ भेदनां नाम