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________________ (४) ॥. दंडकविस्तरार्थः ।। (संस्कृतानुवादः) नैरयिका असुरादयः पृथ्व्यादयो द्वीन्द्रियादयश्चैव । गर्भजतियग्मनुष्या, व्यन्तरो ज्योतिषिको वैमानिकः ॥ २ ॥ ॥ शब्दार्थः ॥ नेरइया-नारक. गम्भय-गर्भज. असुराई-असुरकुमार वगेरे (१०) तिरिय-तिर्यच. मणुस्सा-मनुष्यो. पुढवाइ-पृथ्विकाय वगेरे (५) वंतर-व्यन्तर. बेन्दियादओ-दीन्द्रिय वगेरे(३) जोइसिय-ज्योतिषी. चैव-निश्चय. वेमाणी-वैमानिक. गाथार्थः-सात नारकनो १-असुरकुमार वगेरे १०-पृथ्वीकायवगेरे ५-द्वीन्द्रिय वगेरे ३-गर्भजतिर्यंचनो १-गर्भज मनुष्यनो १-व्यंतरनो १-ज्योतिषीनो १-ने वैमानिकनो १ (एम २४ दंडक छे.) ( अहिं चेव ए शब्दमां चकार समुच्चयवाचक ने एव निश्चयवाचक गाथा पूर्त्यर्थ छे ) विस्तरार्थः-आ गाथामां २४ दंडकनां नाम कयां छे, त्यां 'नेरइया'-साते प्रकारना नारकनो १ दंडक गणेलो छे, ते ७ नारकनां नाम-रत्नप्रभा पृथ्वीमा नारक, शर्कराप्रभाना नारक, वालुकामभाना नारक, पंकप्रभाना नारक, धूमप्रभाना नारक, तमः प्रभाना नारक ने तमस्तमःप्रभाना नारक. तथा 'असुराइ'-असुरकुमारादि १० भवनपसिना १० दंडक, तेनां नाम-असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वायुकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, ने द्वीपकुमार (आ अ
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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